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भारत की धर्म और संस्कृति में प्रकृति सम्मान की परंपरा भी है। वही वजह है कि देश में नदियों को तक माता का स्थान दिया गया है। नदियां हमारे देश के लिए जीवनदायिनी रही हैं। जिस प्रकार मानव शरीर में कोशिकाएं रक्त, जल, ऑक्सीजन अन्य का प्रवाह करती हैं। उसी प्रकार हमारे देश में नदियों का विशेष महत्व है। नदियां समस्त जीव और वनस्पतियों में जीवन का संचार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
हमारे देश में नदियों का धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक समेत अन्य दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व हैं। एक ओर जहां हमें नदियों से पीने, सिंचाई, उद्योगों के लिए पानी मिलता है। वहीं दूसरी ओर नदियां भौगोलिक दृष्टिकोण से जलवायु परिवर्तन, भूमिगत जल वृद्धि और सीमाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।
नदियां हमारी धार्मिक परंपराओं का अहम हिस्सा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक होने वाले हमारे सभी संस्कारों की साक्षी हैं। बात परंपराओं की हो रही है तो आप सभी को नदियों से जुड़ी एक परंपरा अवश्य याद होगी। हम सभी जब भी कभी किसी धार्मिक क्रियाकलाप या पर्यटन हेतु भी नदी के तट पर जाते हैं तो उसमें सिक्का फेंकने की परंपरा को अवश्य निभाते हैं। सिक्का फेंकते हुए हम अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है ऐसा क्यों किया जाता है। इस मान्यता के पीछे क्या कारण है। भक्त वत्सल की धर्म ज्ञान सीरीज के इस लेख में नदियों में सिक्का फेंकने की परंपरा के बारे में जानते हैं।
भारतवर्ष में सनातन हिंदू धर्म में नदियों को देवी-देवताओं का निवास माना गया है। नदियों को मां और देवी रूप में पूजा जाता है। इसीलिए नदियों में सिक्के डालने की परंपरा है। यह ईश्वर को दी गई भेंट का प्रतीक है। मान्यता है कि ऐसा करने से आपदाओं को टालने, मनोकामनाओं की पूर्ति करने और ईश्वर के आशीर्वाद पाने में सहायता मिलती है।
मान्यताएं है कि नदियों में सिक्के फेंकने से मनुष्य को अपने पापों से मुक्ति मिलती है और पापों का नाश होता है।
पुराने जमाने में सोना, चांदी और तांबे के सिक्के प्रचलन में थे। ऐसे सिक्के पानी में डालने से धातु के गुण उसमें आकर जल को शुद्ध और स्वास्थ वर्धक बनाते हैं। तांबे को पानी को शुद्ध करने के लिए सबसे अच्छी धातु माना जाता है। एक तरफ सोने और चांदी के धातु गुण उत्तम स्वास्थ्य का प्रतीक है। वहीं दूसरी तरफ तांबे के सिक्के पानी में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया खत्म कर जल को शुद्ध करते हैं। नदी के तटीय इलाकों से जुड़े कुछ क्षेत्रों में इसे संस्कार भी माना जाता है।
नदियों के जल के साथ प्रवाहित होते हुए यह धातु गुण समस्त क्षेत्र को लाभान्वित करते हैं। इस प्रकार नदियों में सिक्के डालने का दशकों पुराना रिवाज है जो एक बार फिर सनातन धर्म की महानता को प्रमाणित करता है कि यह धर्म संस्कृति सामाजिकता और विज्ञान का सर्वश्रेष्ठ समागम है।
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