नवीनतम लेख
मरने के बाद क्या होता है, आत्मा कैसे शरीर छोड़ती है और कैसे दूसरा शरीर धारण करती है। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब हर कोई जानना चाहता है। लेकिन बहुत कम लोग इस बात की हकीकत को जानते हैं कि आखिर मरने के बाद होता क्या है। भक्त वत्सल के धर्म ज्ञान सीरीज के इस लेख में हम आपको इन्हीं सवालों का जवाब देंगे।
शास्त्रों के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा दूसरा शरीर धारण करती है। यह क्रिया तीन दिन से लेकर 40 दिन की समयावधि में पूरी होती है। वहीं, कुछ आत्माओं को भूत प्रेत बनकर भटकना पड़ता है और वे किसी शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती हैं। इस संबंध में गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि मृत्यु के बाद आत्मा 24 घंटे के अंदर धरती पर लौटती है।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।
अर्थात- आत्मा को ना तो कोई शस्त्र काट सकता है, ना आग उसे जला सकती है, ना पानी उसे बहा सकता है और ना ही हवा उसे सुखा सकती है।
गरूड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा का लंबा सफर शुरू हो जाता है और वो यमलोक पहुंचती है। यहां यमराज उसके अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब करते हैं। दंड देते हैं या इनाम देते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस यात्रा में आत्मा को लगभग 86 हजार योजन की दूरी तय करनी पड़ती है।
गरुड़ पुराण में उल्लेख मिलता है कि मनुष्य के द्वारा किए गए कर्म ही उसकी आत्मा के सफर और अगले जन्म को तय करते हैं। उल्लेख है कि अच्छे कर्म करने से आत्मा जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाएगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी। लेकिन इसके लिए पहले मनुष्य को पूर्वजन्मों के कर्म के बंधन से मुक्त होना जरूरी है।
वहीं बुरे कर्मों के फलस्वरूप लोगों का पुनर्जन्म होता है और उनकी आत्मा पृथ्वी लोक पर विभिन्न रूप में जन्म लेकर कर्मों का फल भुगतती है। आपने देखा होगा कि जो लोग अच्छे हैं, उन्हें भी जीवन से कष्ट भोगने पड़ते हैं। यह उन लोगों के पूर्वजन्मों के कर्म होते हैं।
शास्त्रों के मुताबिक, पुनर्जन्म मृत्यु के तीसरे दिन से लेकर 40 दिन में होता है। वहीं उपनिषदों के अनुसार एक क्षण के कई भाग कर दीजिए उससे भी कम समय में आत्मा एक शरीर छोड़ तुरंत दूसरे शरीर को धारण कर लेती है। वहीं अगले जन्म में आप किस जाति या योनि में जन्म लेंगे यह भी कर्म फल पर निर्भर हैं। पुनर्जन्म में कर्मों के अनुसार वनस्पति जाति, पशु जाति, पक्षी जाति और मनुष्य जाति में जन्म होता है।
यजुर्वेद में कहा गया है कि शरीर छोड़ने के पश्चात, जिन्होंने तप-ध्यान किया है वे ब्रह्मलोक चले जाते हैं अर्थात ब्रह्मलीन हो जाते हैं। सत्कर्म करने वाले स्वर्ग चले जाते हैं। वहीं राक्षसी कर्म करने वाले प्रेत योनि में भटकते रहते हैं और कुछ पुन: धरती पर जन्म ले लेते हैं।
वहीं ईसाई धर्म में मृत्यु के बाद के 40 दिनों को न्याय की अवधि कहा गया है। इस बीच ही आत्मा ईश्वर के सामने न्याय के लिए खड़ी रहती है। ईश्वर उसे कर्मों के अनुसार फल देते हैं।
भारत में धार्मिक पुस्तकों की सबसे बड़ी निर्माताओं में से एक गीता प्रेस गोरखपुर ने भी अपनी किताब 'परलोक और पुनर्जन्मांक' में ऐसी कई घटनाओं का वर्णन किया है और पुनर्जन्म होने की पुष्टि की है। इसी तरह इस विषय पर लिखी गई एक अन्य किताब, 'पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य' में भी पुनर्जन्म के बारे में बहुत विस्तार से जानकारी मिलती है।
धार्मिक मान्यताओं के इतर आधुनिक विज्ञान की बात करें तो बेंगलुरु के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत प्रोफेसर ने भी इस विषय पर शोध किया था। इस शोध के परिणामों को एक किताब 'श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ कैसेज इन इंडियास' के रूप में संग्रहित किया गया है। इस किताब में 1973 के बाद से भारत में हुई 500 पुनर्जन्म की घटनाओं का उल्लेख है। भारत के अलावा इन विषय पर अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेंसन ने 40 साल तक शोध किया और अपनी किताब 'रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी' में इससे जुड़े कई रहस्यों को उजागर किया है। इसे सबसे महत्वपूर्ण शोध किताबों में से एक माना गया है।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।