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प्रयागराज में महाकुंभ मेले का समापन 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन होगा और इसी दिन महाकुंभ का अंतिम स्नान भी किया जाएगा। इस बार महाशिवरात्रि पर कुछ विशेष संयोग बन रहे हैं। 26 फरवरी को त्रिग्रही के साथ ही बुधादित्य योग और चंद्रमा के नक्षत्र श्रवण का भी संगम होगा। चंद्रमा के नक्षत्र श्रवण में 31 वर्षों के बाद बुधादित्य और त्रिग्रही योग में महाशिवरात्रि मनाई जाएगी। शिवरात्रि के दिन सूर्य, बुध और शनि एक साथ कुंभ राशि में स्थित रहेंगे। लगभग 149 वर्षों के बाद इन तीनों ग्रहों की युति और महाशिवरात्रि का योग बन रहा है। इस कारण महाशिवरात्रि पर स्नान का महत्व और भी बढ़ गया है। ग्रहों के दुर्लभ योग में शिव पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं शीघ्र पूरी हो सकती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस योग में की गई पूजा-पाठ से कुंडली से जुड़े ग्रह दोष भी शांत हो सकते हैं।
इस वर्ष फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी को प्रातः 11 बजकर 8 मिनट पर प्रारंभ होगी। यह तिथि 27 फरवरी को प्रातः 8 बजकर 54 मिनट पर समाप्त होगी। 26 फरवरी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा और इसी दिन व्रत भी रखा जाएगा। इस बार महाशिवरात्रि के दिन प्रयागराज के महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष संयोग बन रहा है। इसी कारण महाशिवरात्रि का पर्व कई गुना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
महाशिवरात्रि व्रत में रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इन चार प्रहरों में शिवलिंग का अभिषेक दूध, दही, मधु, घृत और गंगाजल से किया जाता है। साथ ही बिल्वपत्र, धतूरा, भांग और अक्षत अर्पित करने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
महाशिवरात्रि के मनाने के पीछे विभिन्न मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हैं। महाशिवरात्रि का अर्थ है 'शिव की रात्रि'। यह भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करने का विशेष अवसर माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए प्रतिवर्ष फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, इसी तिथि पर प्रथम बार भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इस दिन शिवजी की विशेष पूजा और आराधना की जाती है तथा विशेष अभिषेक किया जाता है।
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