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आज बात करते हैं तीसरे शाही स्नान की। लेकिन उससे पहले शॉर्ट में शाही स्नान के बारे में जान लीजिए।
शाही स्नान कुंभ मेले का प्रमुख आकर्षण है। इसके लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु और साधु संत महाकुंभ वाली जगह इकट्ठे होते हैं। इस दौरान सबसे पहले अखाड़ों के साधु-संत, विशेष रूप से नागा साधु, पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। इसके बाद आम लोगों को इजाजत होती है। माना जाता है कि शाही स्नान करने की पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
तीसरा शाही स्नान इस बार 29 जनवरी 2025 को माघी अमावस्या के अवसर पर आयोजित किया जाएगा। माघी अमावस्या बेहद पवित्र मानी जाती है और कुंभ के दिन इसका महत्व और बढ़ जाता है।
माघ अमावस्या यानी मौनी अमावस्या पर शाही स्नान का शुभ मुहूर्त ब्रह्म मुहूर्त में होता है। ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5 बजकर 21 मिनट से 6 बजकर 13 मिनट तक होता है.
कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह परंपरा वेदों के समय से चली आ रही है, जबकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसकी शुरुआत मध्यकाल में हुई थी।
शाही स्नान को आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक माना जाता है। इसे "अमृत प्राप्ति" का अवसर कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं। इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित होता है, और शाही स्नान का महत्व इसी से जुड़ा है।
शाही स्नान के दिन साधु-संतों के लिए अलग से पुल बनाए जाते हैं। जिससे उन्हें स्नान स्थलों तक पहुंचने में आसानी हो। इन पर आम श्रद्धालुओं प्रतिबंधित होते हैं। सुरक्षा के लिए शाही स्नान के दौरान बड़ी संख्या में पुलिस बल भी तैनात होता है, वहीं किसी भी तरह की हेल्थ इमरजेंसी के लिए एंबुलेंस मौके पर खड़ी रहती है।
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