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हिंदू धर्म के 13 प्रमुख अखाड़े अलग-अलग संप्रदायों में बंटे हुए है। इन्ही में से एक संप्रदाय है वैष्णव। वैष्णव संप्रदाय के साधु संत भगवान विष्णु और उनके अवतारों के उपासक होते हैं। इसकी स्थापना भी भगवान विष्णु के प्रति समर्पण और वैष्णव धर्म के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से की गई थी। इसी कारण से संप्रदाय के अखाड़ों के साधु भजन, कीर्तन, और कथा वाचन के माध्यम से धर्म का प्रचार करते हैं। वहीं इनकी पूजा शैली भी बाकी अखाड़ों से बेहद अलग होती है। वैष्णव अखाड़े में सेवा भाव को बहुत महत्व दिया जाता है। साधु संत समाज सेवा के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
यह अखाड़ा भगवान राम के प्रति समर्पित है। इसका केंद्र अयोध्या में है। अखाड़े ने राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और करीब 100 साल तक कोर्ट में लड़ाई लड़ी। वहीं इसकी स्थापना की बात करें तो 14वीं शताब्दी में वैष्णव संत और कवि रामानंद ने इसकी नींव रखी थी। आज अखाड़े के देश के कई राज्यों में मंदिर है। वहीं इसके साधु-संतों का मानना है कि भक्तों की रक्षा करना इनका परम कर्तव्य है।
इस अखाड़े का पूरा नाम श्री पंचायती निर्वाणी अखाड़ा है। निर्वाणी अखाड़े की स्थापना का सटीक समय ज्ञात नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि इसकी स्थापना वैष्णव भक्ति आंदोलन के दौरान मध्यकालीन भारत में अभय रामदास जी नाम के संत ने की। इसका मुख्य केंद्र अयोध्या में स्थित हनुमानगढ़ी है। इसे अयोध्या का सबसे ताकतवर अखाड़ा माना जाता है।यहां से कई कई प्रोफेशनल पहलवान भी निकले हैं। अखाड़ा श्रीराम और श्रीकृष्ण की भक्ति के साथ-साथ वेदों, उपनिषदों, और पुराणों के अध्ययन और उनके प्रचार-प्रसार को प्राथमिकता देता है।
यह वैष्णव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा है। इसकी पहचान माथे पर लगा एक प्रकार का तिलक, जटाजूट और सफ़ेद कपड़े हैं। इस अखाड़े का झंडा भी अन्य झंडों से अलग होता है। दिगंबर अखाड़े का धर्म ध्वज पांच रंगों का होता है. इस ध्वज पर हनुमान जी की फोटो होती है। अखाड़ा का मुख्यालय उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित है, जो भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का प्रमुख स्थान है। इसके अलावा, इसके साधु अन्य तीर्थ स्थलों, जैसे वृंदावन, अयोध्या, और प्रयागराज में भी सक्रिय रहते हैं। साधु संतों की संख्या इसमें 10,000 से 15,000 के बीच है।
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