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गया का प्रेतशिला पर ताली बजाकर किया जाता है पिंडदान
भारतीय परंपरा और संस्कृति में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है, जिसमें पूर्वजों को याद करके उनका तर्पण और पिंडदान किया जाता है।
पितृपक्ष को कनागत क्यों कहा जाता है? जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा
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गरुड़ पुराण से जानिए कैसे होती है मृत्यु के बाद की यात्रा
पितृपक्ष की शुरूआत 18 सितंबर से हो चुकी है, यो पर्व 2 अक्टूबर तक जारी रहेंगे। इस दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण आदि करते हैं। घर-परिवार में जिन लोगों की मृत्यू हो जाती है, वो पितृ बन जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इंसान की मृत्यू के बाद भी उसकी राह आसान नहीं होती है।
घर में रहकर इस तरह करें श्राद्ध
पितृपक्ष की शुरूआत होते ही हम अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण आदि करने के लिए पवित्र नदियों के तट की तलाश में लग जाते हैं, जहां इस दौरान बहुत भीड़ देखने को मिलती है। सभी लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पवित्र घाटों पर जाकर तर्पण करते हैं।
पितृपक्ष की शुरूआत हो चुकी है, ये 16 दिन हमारे पूर्वजों और पितरों को समर्पित होते हैं। इस दौरान किए गए श्राद्ध-तर्पण से घर-परिवार के पितर देवता तृप्त होते हैं और परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं।
चैत्र से फाल्गुन तक: भारतीय संस्कृति में 12 महीनों के आहार नियम
प्राचीन भारतीय परंपराओं और आयुर्वेद में आहार का सीधा संबंध ऋतु और शरीर की ज़रूरतों से बताया गया है। भारतीय संस्कृति के अभ्यासी और भारतीय संस्कृति के जानकार पंडित डॉ. राजनाथ झा इस विषय पर बताते हैं कि हर महीने के अनुसार आहार का चयन करना न केवल शरीर के स्वास्थ्य के लिए बल्कि मानसिक संतुलन के लिए भी आवश्यक है।
गया में सूर्यास्त के बाद भी यहां होता है पिंडदान और श्राद्ध
भारत की पवित्र नगरी गया दरअसल भगवान विष्णु की पावन भूमि के रूप में जानी जाती है। गया पूरे विश्व में पिंडदान और श्राद्ध के लिए प्रसिद्ध है।
पितरों की नाराजगी के 9 महत्वपूर्ण संकेत
यदि आपके घर में भी है अशांति तो नाराज हो सकते हैं आपके पितृ, जानिए पितरों की नाराजगी के 9 महत्वपूर्ण संकेत.
पितरों की प्रसन्नता के 5 संकेत
पितृपक्ष हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण समय माना जाता है, इस वर्ष इसकी शुरुआत बीते 17 सितंबर से हो गई है। ज्योतिर्वेद विज्ञान केंद्र पटना के ज्योतिषाचार्य डॉ. राजनाथ झा के अनुसार यह 15 दिनों का एक अति विशेष कालखंड होता है जब लोग अपने पूर्वजों को तर्पण और श्राद्ध अर्पित करते हैं, जिससे उनकी आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो सके।