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सुखी दांपत्य जीवन के 5 उपाय

 शुभ योग में विवाह पंचमी, इन 05 उपायों से दांपत्य जीवन में आएगी खुशहाली 


साल के आखिरी माह यानी दिसंबर की शुरुआत हो चुकी है, और यह माह कई पवित्र व्रत-त्योहारों से भरा है। इनमें विवाह पंचमी का विशेष महत्व है, जो भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह की स्मृति में मनाई जाती है। हिंदू धर्म में राम-सीता की जोड़ी को आदर्श दांपत्य जीवन का प्रतीक माना गया है। इस दिन उनकी पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि और मधुरता आती है। इस वर्ष 6 दिसंबर 2024 को विवाह पंचमी का पर्व मनाया जाएगा। शुभ योगों के इस दिन कुछ खास उपाय करने से जीवन की परेशानियां दूर हो सकती हैं।



क्या है विवाह पंचमी का महत्व? 


विवाह पंचमी मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व भगवान राम और माता सीता के विवाह का प्रतीक है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन उनकी पूजा और भक्ति से वैवाहिक जीवन में चल रही समस्याएं समाप्त होती हैं।

इस वर्ष विवाह पंचमी पर ध्रुव योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का निर्माण हो रहा है। इन योगों को अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन योगों में किए गए उपाय तुरंत फल देते हैं और रिश्तों में सकारात्मकता भी लाते हैं।



विवाह पंचमी पर करें ये पांच खास उपाय


  • केले के पेड़ की पूजा: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विवाह पंचमी के दिन केले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। यह उपाय उन लोगों के लिए खासतौर पर लाभकारी है, जिनके विवाह में अड़चनें आ रही हैं। इससे दांपत्य जीवन में शांति और स्थिरता आती है।
  • रामचरितमानस का पाठ: इस दिन रामचरितमानस में वर्णित राम-सीता प्रसंग का पाठ करना अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि इससे वैवाहिक जीवन में चल रही समस्याएं समाप्त होती हैं और जीवन में सुख-शांति आती है।
  • माता सीता को सुहाग का सामान अर्पित करें: शुभ योग में माता सीता को सिंदूर, चूड़ियां, साड़ी जैसे सुहाग सामग्री अर्पित करें। यह उपाय पति-पत्नी के बीच चल रही खटपट को समाप्त करता है और रिश्ते में मधुरता लाता है।
  • भगवान राम-सीता की पूजा: इस दिन भगवान राम और माता सीता की विशेष पूजा करें। पूजा के समय उन्हें पंचामृत का भोग अर्पित करें। मान्यता है कि इससे दांपत्य जीवन में खुशियां आती हैं और रिश्तों में विश्वास बढ़ता है।
  • भगवान राम को केसर भात का भोग लगाएं: धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान राम को केसर भात का भोग लगाने से वे प्रसन्न होते हैं। इसे विवाह पंचमी पर अर्पित करने से रिश्तों में प्रेम, विश्वास और स्थिरता बनी रहती है।



सीता माता की आरती


आरति श्रीजनक-दुलारी की। 

सीताजी रघुबर-प्यारी की।।

जगत-जननि जगकी विस्तारिणि, नित्य सत्य साकेत विहारिणि।

परम दयामयि दीनोद्धारिणि, मैया भक्तन-हितकारी की।।

आरति श्रीजनक-दुलारी की।

सतीशिरोमणि पति-हित-कारिणि, पति-सेवा-हित-वन-वन-चारिणि।

पति-हित पति-वियोग-स्वीकारिणि, त्याग-धर्म-मूरति-धारी की।।

आरति श्रीजनक-दुलारी की।।

विमल-कीर्ति सब लोकन छाई, नाम लेत पावन मति आई।

सुमिरत कटत कष्ट दुखदायी, शरणागत-जन-भय-हारी की।।

आरती श्री जनक-दुलारी की। सीता जी रघुबर-प्यारी की।



भगवान श्री राम की आरती


श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।

नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।। 

कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।

पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।

भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।

रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।

छंद 

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।

करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।

एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।

तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।

।।सोरठा।।

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।



प्राप्त होगी सुख समृद्धि और शांति 


विवाह पंचमी का पर्व धार्मिक और वैवाहिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन किए गए पूजा-पाठ और उपाय ना केवल दांपत्य जीवन की परेशानियों को दूर करते हैं। बल्कि, जीवन में सुख-समृद्धि और शांति भी लाते हैं। भगवान राम और माता सीता की पूजा से उनकी कृपा प्राप्त कर, हम अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हैं।


बसंत पंचमी क्या भोग लगाएं

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। इसी कारण से हर वर्ष इस तिथि को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है।

सरस्वती नदी की पूजा कैसे करें?

सरस्वती नदी का उल्लेख विशेष रूप से ऋग्वेद, महाभारत, और विष्णु पुराण जैसे ग्रंथों में किया गया है। वेदों में इसे एक दिव्य नदी के रूप में पूजा गया है और यह ज्ञान, कला और संगीत की देवी सरस्वती से जुड़ी हुई मानी जाती है।

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