नवीनतम लेख
विवाह पंचमी के अवसर पर वृंदावन में ठाकुर बांके बिहारी का जन्मदिन बड़े ही धूमधाम और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। यह दिन मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को आता है, जिसे बांके बिहारी के प्राकट्य दिवस के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन वृंदावन का विश्वविख्यात बांके बिहारी मंदिर भव्य रूप से सजाया जाता है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। देश-विदेश से आए श्रद्धालु इस पावन अवसर का हिस्सा बनते हैं। तो आइए इस लेख में विस्तार से इस दिन के महत्व और ठाकुर बांके बिहारी के जन्मदिन के बारे में जानते हैं।
बांके बिहारी मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले में स्थित है। यह वृंदावन धाम के प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार है। यह मंदिर बिहारीपुरा क्षेत्र में स्थित है और भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप को समर्पित है। ‘बांके बिहारी’ नाम का विशेष अर्थ है “बांके” यानी तीनों स्थानों से झुके हुए और “बिहारी” का अर्थ है ‘वृंदावन में विहार करने वाले’। यह नाम भगवान कृष्ण के बाल रूप और उनकी मोहक छवि को समर्पित है।
इस मंदिर का निर्माण स्वामी हरिदास ने करवाया था जो स्वयं भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त और महान संगीतकार थे। कहा जाता है कि एक दिन स्वामी हरिदास ने अपनी साधना के दौरान राधा-कृष्ण की दिव्य छवि को देखा। उनकी प्रार्थना और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने अपने बाल स्वरूप में प्रकट होकर यही निवास करने का वरदान दिया। इसी स्वरूप को आज ठाकुर बांके बिहारी के रूप में पूजा जाता है।
मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को बांके बिहारी का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर वृंदावन में विशेष उत्सव मनाया जाता है। मंदिर को फूलों और सुंदर रोशनी से सजाया जाता है। भक्तों के लिए भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है। भगवान को शृंगार रस और भक्ति रस में लिप्त बाल गोपाल के रूप में सजाया जाता है। इस दिन भगवान को विशेष भोग भी अर्पित किया जाता है जिसमें लड्डू, माखन-मिश्री और दूध जैसे व्यंजन शामिल होते हैं। मंदिर में कीर्तन, भजन और संकीर्तन का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश-विदेश से आए भक्त भगवान की महिमा का गुणगान करते हैं।
बांके बिहारी के जन्मोत्सव को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। भक्तों का मानना है कि इस दिन भगवान बांके बिहारी की पूजा-अर्चना से जीवन में खुशियां आती हैं और संकटों का नाश होता है। इस दिन मंदिर में उमड़ी भीड़ और श्रद्धालुओं का उत्साह दर्शाता है कि भगवान कृष्ण के प्रति उनकी आस्था कितनी गहरी है। यह भी माना जाता है कि इस दिन किए गए दान और सेवा का फल कई गुना अधिक मिलता है। इसलिए कई भक्त भोजन, कपड़े और अन्य जरूरत की चीजें दान करते हैं।
बांके बिहारी मंदिर की एक विशेषता यह है कि यहां भगवान की प्रतिमा के दर्शन दिन में केवल कुछ समय के लिए ही होते हैं। भक्तों का मानना है कि बांके बिहारी की आंखों में ऐसी आकर्षण शक्ति है कि कोई भी उन्हें निहारने के बाद मोहग्रस्त हो सकता है। इसलिए दर्शन के दौरान भगवान की आंखों को ढक दिया जाता है।
इस पावन अवसर पर वृंदावन और आसपास के क्षेत्र में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। यहां तक कि देश-विदेश से भी हजारों लोग इस विशिष्ट उत्सव का हिस्सा बनने आते हैं। मंदिर के आसपास मेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
भगवान कृष्ण का यह बाल स्वरूप भक्तों के हृदय को आनंदित करता है और उनकी आध्यात्मिक यात्रा को भी प्रेरित करता है। यह दिन भगवान के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का विशेष अवसर होता है और समाज में सेवा और परोपकार की भावना को बढ़ावा भी देता है।