नवीनतम लेख

विकट संकष्टी चतुर्थी पर चंद्र दर्शन का समय

विकट संकष्टी चतुर्थी पर कब करें चंद्र दर्शन, जानिए की शुभ तिथि; इससे होंगे सभी कार्य सिद्ध

हिन्दू धर्म में विकट संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश का एक महत्वपूर्ण पर्व होता है, जिसे भक्त भगवान गणेश की कृपा प्राप्ति और सभी विघ्नों के नाश के लिए करते हैं। यह पर्व प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, और वैशाख महीने की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी यानी संकटहारा चतुर्थी के नाम से भी जाना है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि यह चतुर्थी सोमवार को पड़ती है तो इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है, जो और भी शुभ मानी जाती है। 

17 अप्रैल को मनाई जाएगी विकट संकष्टी चतुर्थी 

इस वर्ष वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 16 अप्रैल, बुधवार दोपहर 1:16 बजे से शुरू होगी और 17 अप्रैल, गुरुवार दोपहर 3:23 बजे समाप्त होगी। हिंदू धर्म में कोई भी तिथि सूर्योदय के साथ मानी जाती है। इसलिए सूर्योदय के अनुसार, चतुर्थी पूजन 17 अप्रैल को की जाएगी। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन चंद्रमा उदय रात 8:45 बजे होगा। इसलिए यह समय चतुर्थी पूजन और चंद्रदेव को अर्घ्य देने के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। 

विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत से होता है कष्टों का निवारण

वैशाख माह की संकष्टी चतुर्थी, जिसे विकट संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है, यह भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण पर्व है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है, और उनकी पूजा से सभी संकट दूर होते हैं। इसलिए इस व्रत का उद्देश्य जीवन में आने वाली बाधाओं और कष्टों का निवारण करना होता है। साथ ही, यह व्रत न केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए, बल्कि परिवार की समृद्धि और कल्याण के लिए भी शुभ माना जाता है। 

विकट संकष्टी चतुर्थी पर भक्त ऐसे करते हैं पूजा 

  • संकष्टी चतुर्थी व्रत के दौरान भक्त सूर्योदय से चंद्रमा के उदय तक उपवास रखते हैं।
  • शाम के समय गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें उन्हें दूर्वा घास, फूल, मोदक और अन्य प्रिय वस्तुएं अर्पित की जाती हैं। 
  • इसके बाद चंद्रमा को चाँदी या तांबे के लोटे दूध तथा सफ़ेद मिठाई का अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। यह व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है तथा परिवार के सभी सदश्यों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।  

सुंदरकांड के नाम के पीछे का कारण

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में श्री हनुमान जी की भक्ति, शक्ति, साहस, सेवा और समर्पण की अनुपम कथा का वर्णन किया गया है।

देवा हो देवा गणपति देवा (Deva Ho Deva Ganpati Deva)

गणपति बाप्पा मोरया
मंगल मूर्ति मोरया

धरती गगन में होती है तेरी जय-जयकार (Dharti Gagan Mein Hoti Hai Teri Jay-Jayakar)

जय जय शेरा वाली मां, जय जय मेहरा वाली मां।
जय जय ज्योता वाली मां, जय जय लाता वाली मां।।

आरती भगवान श्री रघुवरजी की (Aarti Bhagwan Shri Raghuvar Ji Ki)

आरती कीजै श्री रघुवर जी की, सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की।
दशरथ तनय कौशल्या नन्दन, सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन।