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हर ग्रहण के दौरान एक सूतक काल होता है। जिसमें कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। सूतक काल का खास महत्व होता है। यह धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। होली के दिन, 14 मार्च को साल का पहला चंद्र ग्रहण लगा था, लेकिन यह भारत में दिखाई नहीं दिया। इसलिए इसका सूतक काल भी नहीं माना गया। अब चंद्रग्रहण के बाद मार्च में ही सूर्यग्रहण लगने वाला है। इसे लेकर लोगों के मन में कई सवाल भी हैं। क्या इस बार सूतक काल होगा? इसका क्या असर पड़ेगा?। चलिए लेख के जरिए आपको सूर्यग्रहण के दौरान लगने वाले सूतक काल के बारे में थोड़ा और विस्तार से जानते हैं।
जब भी चंद्र ग्रहण या सूर्यग्रहण होता है, तो उसके साथ सूतक काल भी शुरू हो जाता है। यह समय धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। सूर्यग्रहण के दौरान सूतक काल ग्रहण लगने से 12 घंटे पहले शुरू हो जाता है। इस समय को अशुभ माना जाता है, इसलिए इस दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किए जाते। मंदिरों के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और पूजा-पाठ भी रोक दिया जाता है। हालांकि, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार मार्च में लगने वाला सूर्यग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए इसका सूतक काल यहां मान्य नहीं होगा।
आखिर क्यों ढक जाता है सूर्य का तेज?
सूर्यग्रहण एक खास खगोलीय घटना होती है, जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है और कुछ समय के लिए सूर्य की रोशनी को ढक लेता है। इस दौरान धरती पर कुछ समय के लिए अंधेरा सा छा जाता है। इस बार सूर्यग्रहण 29 मार्च को चैत्र अमावस्या के दिन लगेगा। यह एक खंडग्रास सूर्यग्रहण होगा, जिसका मतलब है कि चंद्रमा सूर्य का केवल कुछ हिस्सा ही ढकेगा। यह ग्रहण दोपहर 2 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगा और शाम 6 बजकर 14 मिनट तक चलेगा। यह दृश्य खगोलीय दृष्टि से काफी खास रहेगा।
चूंकि 29 मार्च 2025 का सूर्यग्रहण भारत में असर नहीं डालेगा, इसलिए इस बार सूतक काल से जुड़े किसी खास नियम को अपनाने की जरूरत नहीं होगी। हालांकि, आस्था रखने वाले लोग अपनी मान्यताओं के अनुसार कुछ नियमों का पालन कर सकते हैं।
यह लेख ज्योतिषीय मान्यताओं पर आधारित है और इसका उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी देना है। इसमें दी गई जानकारी का वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। पाठकों से अनुरोध है कि इसे अंधविश्वास के रूप में न लें। कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय विशेषज्ञ की सलाह से ही लें।