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Shukravar Vrat Vidhi: हिंदू धर्म में व्रत रखने की परंपरा सदियों से चली आ रही है और सप्ताह के प्रत्येक दिन विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा का अपना खास महत्व है। ऐसी मान्यता है कि व्रत रखने से न सिर्फ शारीरिक और मानसिक लाभ मिलते हैं, बल्कि भौतिक सुख भी प्राप्त होते हैं। पौराणिक मान्यता है कि शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी को समर्पित है। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।
आइए, इस आर्टिकल में आपको बताते हैं कि शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी का व्रत कैसे करें। साथ ही यह भी बताएंगे कि अगर हम शुक्रवार व्रत का उद्यापन कर रहे हैं तो उसके लिए पूजा विधि क्या है। इस पूजा के लिए हमें किन सामग्रियों की जरूरत होगी और किस दिन से हम यह व्रत शुरू कर सकते हैं, सब कुछ यहां जानिए।
अगर आप शुक्रवार व्रत शुरू करना चाहते हैं या फिर शुक्रवार व्रत का उद्यापन करना चाहते हैं तो आपको निम्नलिखित पूजा सामग्रियों की जरूरत होगी। जैसे - देवी लक्ष्मी की पूजा में कलश, चंदन, मौली, माता लक्ष्मी की प्रतिमा, दही, केला, दूध, जल, बत्ती, दीपक, हल्दी, कुमकुम, पीला चावल, चना, गुड़, घी और कपूर आदि की आवश्यकता होगी। इसलिए पूजा करने से पहले इन सामग्रियों को एक जगह रख लें।
शुक्रवार के दिन व्रत रखने से पहले यह ध्यान रहे कि इस दिन आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और उसके बाद स्नान करें। स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और माता लक्ष्मी के सामने जाकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद घर में आप जहां पूजा करना चाहते हैं, उस जगह को गंगाजल से पवित्र करें और उसके बाद वहां माता लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा-अर्चना करें।
शुक्रवार के दिन अगर आप व्रत का उद्यापन कर रहे हैं तो इस दिन कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखें। पूजा करने से पहले प्रसाद के लिए खीर जरूर बना लें। इसके बाद व्रत का संकल्प लेकर लाल रंग का वस्त्र धारण करें। वस्त्र धारण करने के बाद एक चौकी लें और उसके ऊपर लाल रंग का कपड़ा बिछा लें और माता की प्रतिमा स्थापित करें। तत्पश्चात माता को सिंदूर, अक्षत, फूल और माला चढ़ाएं। साथ ही भोग में चना, गुड़, केला और खीर अर्पित करें। भोग लगाने के बाद घी का दीपक जलाएं और कथा पढ़ें एवं आरती करें।
पूजा-अर्चना के बाद शुक्रवार के दिन सात कुंवारी कन्याओं को श्रीफल दान दें और उन्हें कुमकुम लगाएं। इसके बाद सभी कन्याओं का चरण स्पर्श करें और उन्हें विदा करें। इसके बाद परिजनों को खाना खिलाएं और स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। इस विधि से आप शुक्रवार व्रत का उद्यापन कर सकते हैं।
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥
ऊँ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नम:।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः
ॐ शुं शुक्राय नमः
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता, मैय्या तुम ही जग माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता, मैय्या सुख संपत्ति पाता।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता, मैय्या तुम ही शुभ दाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता, मैय्या सब सद्गुण आता।
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता, मैय्या वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता, मैय्या क्षीरगदधि की जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता, मैय्या जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
सब बोलो लक्ष्मी माता की जय, लक्ष्मी नारायण की जय।