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सामा चकेवा पर्व पर बहनें मांगती हैं भाई की सलामती की दुआ, बनाई जाती है मिट्टी की मूर्ति


सामा चकेवा एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। इसे विशेषकर उत्तर भारत में मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहनों के प्यार और संबंध को समर्पित है। सामा भगवान श्री कृष्ण और जाम्बवती की पुत्री हैं और चकेवा जो सामा के भाई हैं उनपर ही पूरा पर्व आधारित है। इस पर्व की शुरुआत छठ पर्व के समापन के बाद होती है। इसमें बहनें मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण करती हैं और अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं। यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करता है।


भाई-बहनों के प्रेम का पर्व है सामा चकेवा


सामा चकेवा का पर्व भाई-बहनों के रिश्ते को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण उत्सव है। जो विशेष रूप से उत्तर भारत खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहन के पवित्र बंधन को दर्शाता है और इसे छठ पर्व के समापन के बाद मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं।


सामा चकेवा का खेल 


सामा चकेवा का खेल एक विशेष सांस्कृतिक परंपरा है जिसमें महिलाएं मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण करती हैं। ये मूर्तियाँ सामा नामक बहन और चकेवा नामक उनके भाई की होती है। इस खेल की प्रक्रिया में महिलाएं पहले सामा और चकेवा की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाती हैं। मूर्तियों को सुखाने के बाद उन्हें रंगीन पेंट से सजाया जाता है। फिर सजाई गई मूर्तियों के साथ महिलाएं गीत गाते हुए खेल खेलती हैं। इस दौरान वे अपने भाई की सलामती की प्रार्थना करती हैं। महिलाएं बांस की डलिया में मूर्तियों को लेकर चांदनी रात में गलियों में घूमती हैं। इससे पर्व का आनंद और भी बढ़ जाता है। पूर्णिमा के दिन सभी मूर्तियां और खिलौने विसर्जित कर दिए जाते हैं। जो इस पर्व के समापन का प्रतीक होता है।


क्या है सामा चकेवा की कथा? 


सामा चकेवा का पर्व एक पौराणिक कथा से जुड़ा है। मान्यता है कि सामा और चकेवा भगवान श्री कृष्ण और जाम्बवती की संतान थे। कथा के अनुसार सामा के पति का नाम चक्रवाक था। एक बार चूडक नामक सूद्र ने सामा पर अनुचित आरोप लगाया कि वह ऋषियों के साथ रमण कर रही है। इससे क्रोधित होकर श्री कृष्ण ने सामा को पक्षी बनने का श्राप दे दिया। श्राप के बाद सामा पक्षी बनकर वृंदावन में उड़ने लगीं और चक्रवाक ने भी स्वेच्छा से पक्षी बनने का निर्णय लिया। सामा का भाई जब लौटकर आया और अपनी बहन के पक्षी बनने के बारे में सुना तो उसने श्राप को हटाने के लिए तपस्या करने का निश्चय किया। अंत में चकेवा की तपस्या से भगवान श्री कृष्ण प्रसन्न हुए और सामा को श्राप से मुक्त किया। इस घटना की याद में हर साल सामा चकेवा पर्व मनाया जाता है। सामा चकेवा का पर्व भाई-बहन के रिश्ते को मजबूती से दर्शाता है। 


इस पर्व में कुछ विशेष परंपराएं भी शामिल हैं जो इस प्रकार हैं:


  1. चुगला चुगली: इस पर्व में चुगले की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उसकी चोटी में आग लगाई जाती है और उसे जूते से पीटा जाता है। ये चुगले की नकारात्मकता और उसके कर्म की सजा को दर्शाता है।
  2. चूड़ा और दही: बहनें अपने भाइयों को चूड़ा और दही खिलाकर उनके कल्याण की कामना करती हैं।
  3. छठ से होती है शुरुआत:  इस पर्व की शुरुआत छठ के पारण के दिन से होती है। महिलाएं अपने घरों में सामा चकेवा का निर्माण करना शुरू करती हैं।
  4. गीत और मनोरम खेल: महिलाएं रात्रि के समय आंगन में बैठकर विभिन्न गीत गाती हैं। 
  5. सामा चकेवा का विसर्जन: कार्तिक पूर्णिमा के दिन सामा का विसर्जन किया जाता है। जिसमें पुरुष भी महिलाओं के साथ शामिल होते हैं। 


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