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रविवार व्रत कैसे करें?

Ravivar Vrat Vidhi: रविवार का व्रत कैसे करें, क्या है सही विधि? जानिए  मुहूर्त, उद्यापन, सामग्री और आरती


Ravivar Vrat Vidhi: सनातन धर्म में रविवार के दिन सूर्य देवता की पूजा का बहुत अधिक महत्व बताया गया है। ज्योतिषों के अनुसार भगवान सूर्य को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि किसी भक्त की कुंडली में सूर्य से जुड़ा कोई दोष हो तो उसको रविवार के दिन भगवान सूर्य की आराधना करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से उसका दोष समाप्त हो जाता है। साथ ही उसके जीवन में सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं, अगर कोई रविवार के दिन भगवान भास्कर की पूजा करता है तो वह अपने समस्त कष्टों से मुक्ति पा सकता है और असीम सुखों को पा सकता है। इसका उल्लेख नारद पुराण में भी किया गया है।

नारद पुराण के अनुसार रविवार के दिन पूजा करना काफी आरोग्यदायक और शुभ होता है। रविवार के दिन व्रत रखने से भगवान भास्कर की कृपा भक्तों पर बनी रहती है। ऐसे में इस आर्टिकल में आपको बताते हैं कि रविवार को सूर्यदेव की पूजा-अर्चना कैसे करें, पूजा के लिए किन सामग्रियों की जरूरत होगी,  इस दिन व्रत करने के क्या लाभ होते हैं और रविवार व्रत का उद्यापन कैसे करें, सबकुछ यहां जानिए। 

उद्यापन के लिए पूजा सामग्री

भगवान सूर्य की प्रतिमा, चांदी का रथ, द्वादश दल का कमल का फूल, पात्र, कलश, चावल/अक्षत, धूप, दीप, गंगाजल, पूजन में कंडेल का फूल, लाल चंदन, गुड़, लाल वस्त्र, यज्ञोपवीत, रोली, गुलाल, नैवेद्य, जल पात्र, पंचामृत (कच्चा दूध, दही, घी, मधु तथा शक्कर), पान, सुपारी, लौंग, इलायची, नैवेद्य, नारियल, ऋतुफल, कपूर, आरती के लिए पात्र, हवन की सामग्री, घी, हवन कुण्ड, आम की लकड़ी, गाय के दूध से बनी खीर।

रविवार व्रत विधि

आपको बता दें कि रविवार का व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से शुरू किया जा सकता है। इस दिन सबसे पहले जातक को पूजा के लिए आवश्यक सामग्री एकत्रित कर लेनी चाहिए जैसे: लाल रंग का चन्दन, लाल वस्त्र, गुड़, गुलाल, कंडेल का फूल इत्यादि। साथ ही यह ध्यान भी रखना चाहिए कि पूजा सूर्यास्त से पहले कर लें और भोजन एक ही समय करें। सबसे पहले प्रातःकाल में स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण कर लेना चाहिए। इसके बाद तांबे के कलश में जल लेकर उसमें अक्षत, लाल रंग के पुष्प और रोली इत्यादि डाल कर सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान करना चाहिए और “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:” मंत्र का जाप करना चाहिए।

रविवार व्रत में इन बातों का रखें विशेष ध्यान

साथ ही हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि रविवार के व्रत वाले दिन भोजन सिर्फ एक समय ही और सूर्यास्त से पहले कर लें। भोजन बिलकुल सामान्य होना चाहिए। व्यक्ति को गरिष्ठ, तला हुआ, मिर्च मसालेदार या कोई पकवान नहीं खाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि व्रत के दिन सभी तरह के फल, जल, दूध या दूध से बने हुए भोज्य पदार्थों का सेवन करने से रविवार का व्रत नष्ट नहीं होता है। वहीं, यदि बिना भोजन किए सूर्यास्त हो जाता है तो अगले दिन सूर्योदय के बाद सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने के बाद ही भोजन करना चाहिए। 

रविवार व्रत का कैसे करें उद्यापन?

व्रती को रविवार के दिन प्रात:काल उठ जाना चाहिए और नहा-धोकर लाल अथवा पीला वस्त्र धारण कर लेना चाहिए। इसके बाद पूजा गृह को स्वच्छ कर शुद्ध कर लेना चाहिए। इसके बाद लकड़ी के चौकी पर हरा वस्त्र बिछाएं और कांस्य का पात्र रखें। पात्र के ऊपर सूर्यनारायण की सात घोड़ों सहित प्रतिमा श्रीगणेश के साथ स्थापित करें और सामने आसन पर बैठ जाएं। इसके बाद पूरे विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें। रविवार के दिन आप निम्नलिखित मंत्रों का जाप कर पूजा कर सकते हैं, जैसे- ॐ मित्राय नम:, ॐ रवये नम:, ॐ सूर्याय नम:, ॐ भानवे नम:, ॐ खगाय नम:, ॐ पूष्णे नम:, ॐ हिरण्यगर्भाय नम:, ॐ मरीचये नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ सवित्रे नम:, ॐ अर्काय नम:, ॐ भास्कराय नम:। इसके बाद सूर्य के साथ सारथि अरुण को अर्घ्य दें। हाथ में अक्षत तथा फूल लेकर सूर्य नारायण का आवाहन करें। पूजा-अर्चना के बाद सूर्य देव की आरती करें।

करें भगवान की परिक्रमा

आरती के उपरांत भगवन की परिक्रमा जरूर करें और स्तुति में क्षमा प्रार्थना करें। इस तरह पूजन करने से सूर्य भगवान अति प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर कामना पूरी करते हैं। व्रत के साथ-साथ स्तोत्र पाठ एवं कथा का होना भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसीलिए इस व्रत में भी रविवार व्रत कथा का श्रवण जरूर करना चाहिए।

रविवार व्रत के लाभ

रविवार को सूर्य देव की पूजा करने से सुख -समृद्धि और धन- संपत्ति का भक्तों के जीवन में आगमन होता है और शत्रुओं से भी भगवान हमारी सुरक्षा करते हैं। इस दिन व्रत करने और कथा सुनने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जो भी भक्त रविवार के दिन उपवास रखता है उससे उसको मान-सम्मान, धन, यश और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इससे उनके सभी पापों का भी नाश होता है। इन सबके अलावा रविवार का व्रत उपवासक को मोक्ष देने वाला होता है। अगर कोई श्रद्धालु चर्म रोग, नेत्र रोग और कुष्ठ रोग से पीड़ित हैं तो वह रविवार का व्रत कर आरोग्यवान हो सकते हैं।

रविवार की आरती


ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजाधारी।।
अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे। तुम हो देव महान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते।।
फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते।।
गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते। आदित्य हृदय जपते।।
स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी। दे नव जीवनदान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार। महिमा तब अपरम्पार।।
प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते। बल, बुद्धि और ज्ञान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं। सब जीवों के प्राण तुम्हीं।।
वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने। तुम ही सर्वशक्तिमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल। तुम भुवनों के प्रतिपाल।।
ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशुमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।स्वरूपा।।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।

जया एकादशी व्रत नियम

प्रत्येक महीने में एकादशी दो बार आती है—एक बार कृष्ण पक्ष में और दूसरी बार शुक्ल पक्ष में। कृष्ण पक्ष की एकादशी पूर्णिमा के बाद आती है, जबकि शुक्ल पक्ष की एकादशी अमावस्या के बाद आती है।

ॐ नमः शिवाय मंत्र का रहस्य

महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो भगवान शिव की पूजा और आराधना के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।

विष्णुशयनी एकादशी एवं चातुर्मास व्रत (Vishnushayanee Ekaadashee Evan Chaaturmaas Vrat)

इस एकादशी का नाम विष्णुशयनी भी है। इसी दिन विष्णुजी का व्रत एवं चातुर्मास्य व्रत प्रारम्भ करना विष्णु पुराण से प्रकट होता है।

मेरे राघव जी उतरेंगे पार, गंगा मैया धीरे बहो(Mere Raghav Ji Utrenge Paar, Ganga Maiya Dheere Baho)

मेरे राघव जी उतरेंगे पार,
गंगा मैया धीरे बहो,