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मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाने वाली मत्स्य द्वादशी भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की जयंती के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य यानी मछली का रूप लेकर राक्षस हयग्रीव का वध किया था और वेदों की रक्षा की थी। मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख दशावतारों में से प्रथम अवतार है, जो भगवान विष्णु की शक्ति और उनकी रक्षा करने की क्षमता को दर्शाता है। इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु के मत्स्य रूप की पूजा करने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु जी भक्तों के संकट दूर करते हैं तथा भक्तों के सब कार्य सिद्ध करते हैं। आइए, मत्स्य द्वादशी की कथा को विस्तार से जानते हैं। साथ ही इस दिन के महत्व के बारे में भी जानेंगे।
मत्स्य द्वादशी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के मंदिरों में विशेष पूजा और आराधना की जाती है, जिसमें भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा की जाती है। आंध्र प्रदेश के तिरुपति में स्थित 'नागलापुरम वेद नारायण स्वामी मंदिर' भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार को समर्पित एकमात्र मंदिर है। मान्यता है कि मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी ने मत्स्य का अवतार लेकर दैत्य हयग्रीव का संहार कर वेदों की रक्षा की थी।
कथा के अनुसार एक बार एक सत्यव्रत नाम के प्रतापी राजा, नदी में स्नान करने गए। जब सूर्य देव को जल अर्पित कर रहे थे तो उनकी अंजलि में एक छोटी-सी मछली की आ गई। राजा ने मछली को पुनः नदी में छोड़ना चाहा, लेकिन तभी मछली बोली कि 'राजन में इस नदी में बड़े-बड़े जीव रहते हैं, जो मुझे मारकर खा सकते हैं। कृपया मेरे प्राणों की रक्षा करें।' तब राजा सत्यव्रत उस मछली को अपने कमंडल में रख लिया और अपने घर ले आए।
अगली सुबह जब सत्यव्रत ने देखा तो पाया कि मछली का शरीर इतना बड़ा हो चुका था कि कमंडल उसके लिए छोटा पड़ गया। तब मछली बोली कि 'राजा मैं इस कमंडल में नहीं रह पा रही हूं। कृपया मेरे लिए कोई और स्थान ढूंढिए।' तब सत्यव्रत ने मछली को कमंडल से निकालकर पानी के बड़े मटके में रख दिया। जब राजा ने अगली सुबह देखा तो मटका भी मछली के लिए छोटा पड़ गया। ऐसा करते-करते एक समय के बाद मछली का आकार इतना बड़ा हो गया कि उसे बड़े तालाब में डालना पड़ा। लेकिन कुछ समय बाद मछली का आकार इतना बढ़ गया कि तालाब भी उसके लिए छोटा पड़ गया और उसके बाद राजा ने उसे समुद्र में डाल दिया गया।
लेकिन इसके बाद समुद्र की मछली के लिए छोटा पड़ गया। तब सत्यव्रत समझ गए कि ये कोई आम मछली नहीं है। तब राजा ने बड़े ही विनम्र स्वर में पूछा कि 'आप कौन हैं, जिन्होंने सागर को भी डुबो दिया है?' तब भगवान विष्णु ने उत्तर दिया कि 'मैं हयग्रीव नामक दैत्य के वध के लिए आया हूं। जिसने छल से ब्रह्मा जी से वेदों को चुरा लिया है जिस कारण ज्ञान लुप्त होने से समस्त लोक में अज्ञानता का अंधकार फैल गया है।' भगवान विष्णु आगे कहा कि 'आज से 7 दिन के बाद पृथ्वी पर प्रलय आएगी और संपूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी। तब आपके पास एक नाव आएगी और तब आपको अनाज, औषधि, बीज एवं सप्त ऋषियों को साथ लेकर उस नाव में सवार होना होगा।
भगवान के कथन अनुसार सातवें दिन प्रलय आने पर सत्यव्रत ने ऐसा ही किया और नाव में सप्त ऋषियों को नाव चढ़ाने के साथ-साथ अनाज, औषधि को भरकर रख लिया। इसी बीच सत्यव्रत को मत्स्य रूप में भगवान के पुनः दर्शन हुए। इसके बाद भगवान ने हयग्रीव राक्षस का वध किया और सभी वेद वापस लेकर ब्रह्मा जी को सौंप दिए।