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मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर कैसे करें तर्पण

पितरों के मोक्ष के लिए मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर करें तर्पण, इस विधि का करें पालन  


मार्गशीर्ष माह भगवान कृष्ण, जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित होता है। ऐसे में इस माह में जो पूर्णिमा तिथि आती है। उसका महत्व दोगुना हो जाता है। क्योंकि पूर्णिमा तिथि पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा दिन गंगा स्नान करने, व्रत रखने और तर्पण करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।  इस दिन जो कोई भी भगवान विष्णु का पूजन करता है उसके घर में सुख-समृद्धि आती है और उसके पितरों को भी मोक्ष प्राप्त होता है। आइए जानते हैं मार्गशीर्ष पूर्णिमा कब है? और इस दिन किस विधि से तर्पण करने से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है। 


कब है मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2024? 


पंचाग के अनुसार, साल 2024 में मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि की शुरूआत 14 दिसंबर को शाम 5 बजकर 13 मिनट पर हो रही है जो 15 दिसंबर दोपहर 2 बजकर 35 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में 15 दिसंबर को मार्गशीर्ष की पूर्णिमा मनाई जाएगी। इसी दिन व्रत भी रखा जाएगा साथ ही इस दिन स्नान, दान और पूजन के साथ-साथ पितरों का भी तर्पण किया जाएगा।  


इस विधि से करें पितरों का तर्पण


मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर पितरों का तर्पण करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन पितरों का तर्पण करने से पहले शुभ मुहूर्त देखना आवश्यक है क्योंकि शुभ मुहूर्त में तर्पण करने से विशेष फल मिलता है। इस दिन पितरों का तर्पण करने से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहनने चाहिए। यदि संभव हो तो पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और वहीं पितरों का तर्पण करना चाहिए। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे अपने वंशजों पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। आइये पूरी विधि को विस्तार से जानते हैं। 


तर्पण के लिए शुभ मुहूर्त 


मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन पितरों का तर्पण करने से पहले शुभ मुहूर्त देखना आवश्यक है क्योंकि शुभ मुहूर्त में तर्पण करने से विशेष फल मिलता है। 

  • ब्रह्म मुहूर्त: प्रात: काल 5 बजकर 17 मिनट से लेकर सुबह 6 बजकर 12 मिनट तक (स्नान-दान के लिए)
  • अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 56 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 37 मिनट तक (पूजा और तर्पण के लिए)


तर्पण की विधि


स्नान और पवित्रीकरण: प्रातःकाल सूर्योदय से पहले स्नान करें और पवित्रीकरण करें।

पितरों का आह्वान: पितरों का आह्वान करें और उन्हें तर्पण करने के लिए आमंत्रित करें।

तर्पण के लिए जल तैयार करें: तर्पण के लिए जल तैयार करें, जिसमें जौ, चावल, काले तिल, कुश की जूडी, सफेद फूल, गंगाजल, दूध, दही और घी मिलाएं।

तर्पण करें: तर्पण करने के लिए दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके घुटनों के बल बैठें और जल में कुश डुबोकर ॐ पितृ देवतायै नमः मंत्र का जाप करें।

भोजन के पांच अंश निकाले: मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर पितरों का तर्पण करने के बाद गाय के गोबर के उपलों को जलाना चाहिए. इसमें खीर और पूड़ी अर्पित कर अंगूठे से जल देना चाहिए। इसके भोजन के पांच अंश निकालने चाहिए. ये पांच अंश देवताओं, गाय, कुत्ते, कौवे, चींटी के नाम पर निकालने चाहिए. फिर इन सभी को भोजन अर्पित कर देना चाहिए.

ब्राह्मणों को खाना खिलाएं: पितरों का तर्पण करने के बाद ब्राह्मणों को खाना जरुर खिलाना चाहिए. उसके बाद वस्त्र और दक्षिणा देकर उनको विदा करना चाहिए.

तर्पण के बाद पितरों को विदा करें: तर्पण के बाद पितरों को विदा करें और उन्हें अपने पूर्वजों के साथ जाने के लिए आमंत्रित करें।

दान करें:  इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना अत्यधिक पुण्यदायक माना जाता है। आप अनाज, वस्त्र, या किसी अन्य प्रकार का दान कर सकते हैं।


पूजा की विधि


  • पूजा के लिए सामग्री तैयार करें: पूजा के लिए सामग्री तैयार करें, जिसमें दीप, धूप, चंदन, फूल, मिठाई, फल, तुलसी की पत्तियां और घी का दीपक शामिल हैं।
  • पूजा स्थल को पवित्र करें: पूजा स्थल को पवित्र करें और उसे साफ करें।
  • भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें और उन्हें फूल, मिठाई और फल अर्पित करें।
  • गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें: गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करें।
  • पूजा के बाद आरती करें: पूजा के बाद आरती करें और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करें।

वृश्चिक संक्रांति की पूजा विधि

संक्रांति मतलब सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना और इसका वृश्चिक राशि में प्रवेश वृश्चिक संक्रांति कहलाता है। यह दिन सूर्य देव की विशेष पूजा और दान करने के लिए शुभ है और व्यक्ति के भाग्योदय में होता है।

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