नवीनतम लेख

माघ महीने में कब और क्यों मनाई जाती है कुंभ संक्रांति?

Kumbha Sankranti 2025: माघ माह में क्यों मनाई जाती है कुंभ संक्राति जानिए क्या है कारण 


आत्मा के कारक सूर्य देव हर महीने एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण करते हैं। सूर्य देव के इस राशि परिवर्तन को ही संक्रांति कहते हैं। हर संक्रांति का अपना खास महत्व होता है और इसे धूमधाम से मनाया जाता है। कुंभ संक्रांति हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन सूर्य देव मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं। कुंभ संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने, दान करने और सूर्य देव की पूजा करने का विशेष महत्व है।


इस दिन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा करने से आरोग्य, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। अब ऐसे में माघ माह में कुंभ संक्रांति कब है और इसका महत्व क्या है। इसके बारे में भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं। 



कुंभ संक्रांति कब है? 


ज्योतिषीय गणना के अनुसार, सूर्य देव 12 फरवरी की रात को 9 बजकर 56 मिनट पर मकर राशि को छोड़कर कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। कुंभ राशि में सूर्य देव लगभग एक महीने तक, यानी 13 मार्च तक रहेंगे। इसके बाद, 14 मार्च को सूर्य देव फिर से राशि परिवर्तन करेंगे। इस दौरान, सूर्य देव 19 फरवरी को शतभिषा नक्षत्र और 4 मार्च को पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में भी गोचर करेंगे।



कुंभ संक्रांति शुभ मुहूर्त 


वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष की कुंभ संक्रांति पर पुण्य काल का समय काफी शुभ माना जा रहा है। यह काल दोपहर 12 बजकर 35 मिनट से शुरू होकर शाम 06 बजकर 09 मिनट तक रहेगा। इस दौरान साधक गंगा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करके भगवान की पूजा अर्चना कर सकते हैं। जप, तप और दान करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है।


यह काल शाम 04 बजकर 18 मिनट से शुरू होकर शाम 06 बजकर 09 मिनट तक रहेगा। यह काल पुण्य काल का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इस समय में किए गए सभी धार्मिक कार्य विशेष फलदायी होते हैं। महा पुण्य काल की अवधि लगभग 1 घंटे 51 मिनट की है।



कुंभ संक्रांति शुभ योग 


कुंभ संक्रांति इस वर्ष अत्यंत विशेष होने जा रही है। इस पावन अवसर पर कई शुभ योगों का संयोग बन रहा है, जिनमें सौभाग्य योग, शोभन योग, अश्लेषा और मघा नक्षत्र का संयोग तथा शिववास योग प्रमुख हैं। इन सभी योगों का एक साथ होना अत्यंत शुभ माना जाता है और यह साधकों के लिए विशेष फलदायी सिद्ध हो सकता है। ये दोनों योग व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य लाते हैं। 


इन योगों के प्रभाव से व्यक्ति के सभी कार्य सिद्ध होते हैं और जीवन में उन्नति होती है। ये दोनों नक्षत्र शक्तिशाली माने जाते हैं। इन नक्षत्रों का संयोग व्यक्ति को मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास प्रदान करता है। यह योग भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। इस योग में भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।



कुंभ संक्रांति का धार्मिक महत्व क्या है? 


कुंभ संक्रांति हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह दिन सूर्य देव के मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करने का प्रतीक है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना, दान करना और पूजा-पाठ करना बेहद शुभ माना जाता है। कुंभ संक्रांति के दिन सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि सूर्य देव जीवनदाता हैं और उनकी कृपा से सभी जीवों का कल्याण होता है। इस दिन सूर्य देव को अर्ध्य दिया जाता है और उनकी स्तुति की जाती है। कुंभ संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। 


मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों का जल अमृत के समान होता है और इसमें स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। कुंभ संक्रांति के दिन दान करना भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन अन्न, वस्त्र आदि का दान किया जाता है। इतना ही नहीं, कुंभ संक्रांति के दिन पूजा-पाठ करना भी बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन मंत्रों का जाप, स्तोत्रों का पाठ और भजन-कीर्तन किया जाता है।



बड़े बलशाली है, बाबा बजरंग बली(Bade Balshali Hai Baba Bajrangbali)

जड़ से पहाड़ों को,
डाले उखाड़,

श्री सूर्य देव चालीसा (Shri Surya Dev Chalisa)

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥

तारा है सारा जमाना, श्याम हम को भी तारो (Tara Hai Sara Zamana, Shyam Hamko Bhi Taro)

तारा है सारा जमाना,
श्याम हम को भी तारो ।

मत्स्य अवतार की पूजा कैसे करें?

मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से प्रथम है। मत्स्य का अर्थ है मछली। इस अवतार में भगवान विष्णु ने मछली के रूप में आकर पृथ्वी को प्रलय से बचाया था।