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मार्गशीर्ष महीने में पूर्णिमा तिथि अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाई जाती है। इस साल अन्नपूर्णा जयंती 15 दिसंबर 2024 को है। मां अन्नपूर्णा की कृपा से अन्न-धन का भंडार सदैव भरा रहता है। इसलिए, इन्हें भरण-पोषण की देवी भी कहा जाता है। दरअसल, माता अन्नपूर्णा देवी पार्वती का ही एक रूप हैं। इन्हें अन्नदा और शाकुम्भी भी कहते हैं। मान्यता है कि जीवों की भूख मिटाने के लिए माता पार्वती ने ही अन्नपूर्णा का रूप धारण किया था। काशी विश्वनाथ से मां अन्नपूर्णा का गहरा संबंध है। तो आइए इस आलेख में इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
स्कंदपुराण और काशी खंड में माता अन्नपूर्णा के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। माता अन्नपूर्णा के स्वरूप का वर्णन करते हुए पुराणों में कहा गया है कि वह काफी सुंदर और मनमोहक हैं। उन्हें माता पार्वती का ही एक रूप बताया गया है जो भक्तों पर दया करती हैं। माता अन्नपूर्णा की कृपा से कोई भी भक्त भूखा नहीं रहता। माता अन्नपूर्णा को अन्न की देवी कहा गया है। इसलिए, उनका नाम भी अन्नपूर्णा है। अन्नपूर्णा का अर्थ है अन्न की पूर्ति करने वाली देवी। माता अन्नपूर्णा को लेकर यह तथ्य भी सत्य है कि वो पूरे सृष्टि में अन्न और भोजन का संचालन करती हैं।
माता अन्नपूर्णा को मां दुर्गा या पार्वती का ही रूप माना गया है। साथ ही काशी विश्वनाथ से भी माता अन्नपूर्णा का विशेष संबंध बताया जाता है। काशी में माता अन्नपूर्णा का भव्य मंदिर है, जहां जाने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है।
वैसे तो देशभर में मां अन्नपूर्णा के कई मंदिर हैं। लेकिन काशी में विराजमान माता अन्नपूर्णा मंदिर बहुत खास है। शास्त्रों की मानें तो स्वयं पार्वती जी ने माता अन्नपूर्णा का रूप धारण कर काशी में रहने की इच्छा जताई थी, जिसके बाद शिव जी उन्हें काशी लेकर आ गए।
शास्त्रों के अनुसार यह कहा गया है कि मां अन्नपूर्णा ने ही पार्वती के स्वरूप में भगवान शिव से विवाह किया था। भगवान शिव कैलाश निवासी थे, लेकिन माता पार्वती कैलाश में रहना पसंद नहीं था। इस कारण भगवान शिव माता पार्वती के साथ काशी रहने आए। भगवान के काशी आने के बाद काशी को भोलेनाथ की नगरी कहा जाने लगा। काशी में माता अन्नपूर्णा का भव्य मंदिर है, जहां स्वयं काशी पति भगवान भोलेनाथ माता अन्नपूर्णा से अन्न की भिक्षा मांग रहे हैं। माता अन्नपूर्णा के नगरी में जो कोई भी जाता है वो भूखा नहीं लौटता है, माता अन्नपूर्णा का यह मंदिर अन्नकूट के दिन खुलता है और उस दिन 56 तरह के भोग लगाए जाते हैं। इतना ही नहीं काशी विश्वनाथ मंदिर आने वाले भक्त भी माता अन्नपूर्णा के मंदिर में सुस्वादु भोजन जरूर ग्रहण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां कभी अन्न की कमी नहीं होती।
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय जब पृथ्वी पर सूखा पड़ गया था और जमीन बंजर हो गई थी तब शिव जी ने पृथ्वी के जीवों के कल्याण के लिए स्वयं भिक्षुक का रूप बनाकर माता पार्वती के अन्नपूर्णा स्वरूप से भिक्षा मांगी थी। भगवान शिव माता अन्नपूर्णा से भिक्षा में लिए गए उस अन्न को लेकर पृथ्वी लोक आए थे। पृथ्वी लोक में भगवान शिव ने उस अन्न को बांट दिया और एक बार फिर पृथ्वी लोक धन-धान्य से संपन्न हो गया। इस दिन के बाद पृथ्वी लोक में अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाने लगी।