नवीनतम लेख

भद्रा में रावण की वजह से नहीं बांधी जाती राखी

भद्रा में रावण की वजह से नहीं बांधी जाती राखी, जानिए कौन है भद्रा और क्या है पूरी कहानी


इस साल रक्षाबंधन का त्यौहार 19 अगस्त, सोमवार को है। रक्षाबंधन के दिन शुभ मुहूर्त में बहनें भाई की कलाई पर स्नेह का सूत्र बांधती हैं एवं उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैं और इसके बदले में भाई अपनी बहनों को रक्षा का वचन देते है। हालांकि, रक्षाबंधन में शुभ मुहूर्त के अलावा एक ऐसा काल भी आता है जिसमें राखी बांधना निषेध माना जाता है। मान्यता के अनुसार इस काल में राखी बांधने से रावण की जिंदगी खत्म हो गई थी। यह काल एक ऐसी महिला के नाम पर है जिसने स्वयं देवताओं को भी परेशान कर रखा था। इस काल या नक्षत्र का नाम है भद्रा काल। तो आइए जानते हैं भक्तवत्सल के साथ भद्रा के बारे में विस्तार से…. साथ ही जानेंगे कैसे इस काल में राखी बांधने से रावण के प्राण हरण हुए थे….


कौन है भद्रा


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भद्रा, सूर्यदेव और छाया की पुत्री और शनिदेव की बहन मानी जाती हैं। अपने भाई शनिदेव की तरह ही भद्रा का स्‍वभाव भी बहुत उग्र माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वह हर शुभ कार्य में बाधा डालती थीं, ऐसे में उनके पिता सूर्यदेव ने भद्रा पर नियंत्रण पाने के लिए ब्रह्मदेव से मदद मांगी। ब्रह्मदेव ने उन्‍हें नियंत्रित करने के लिए पंचांग के प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया। इस दौरान ब्रह्मदेव ने कहा  कि भद्रा लगी होने पर कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाएगा। लेकिन भद्रा के पश्चात उस कार्य को किया जा सकेगा। हालांकि भद्रा के वक्त तंत्र-मंत्र की पूजा और कोर्ट-कचहरी का कोई काम करना अशुभ नहीं माना जाता है।


क्या है भद्रा काल


भद्रा काल उस समय को कहा जाता है जब चंद्रमा एक विशेष नक्षत्र के साथ स्थित होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस काल के दौरान कोई भी शुभ एवं महत्वपूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए। दरअसल हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं जिनमें  - तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण का नाम शामिल है। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है, और ये प्रमुख रूप से चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। जबकि अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में जो 7वां करण विष्टि होता है उसे ही भद्रा कहा जाता है। यह सदैव गतिशील होती है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। मान्यताओं के अनुसार, रावण की बहन शूर्पणखा ने रावण को भद्रा काल की अवधि में ही राखी बांधी थी जिसकी वजह से रावण का सर्वनाश हो गया। इसलिए रक्षाबंधन के दिन भद्रा के समय राखी नहीं बांधी जाती है।


अलग लोक की अलग अलग भद्रा :

पृथ्वी लोक की भद्रा- मुहूर्त ज्ञान की कुछ प्रतिष्ठित किताबों के अनुसार कुंभ, मीन, कर्क और सिंह राशि में जब चंद्रमा होता है तब भद्रा मनुष्य लोक में यानी पृथ्वी पर निवास करती है। इसलिए उस समय मनुष्य लोक में इसका अधिक अशुभ फल प्राप्त होता है। इसलिए जब भद्रा पृथ्वी लोक में हो तो कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।


स्वर्ग लोक की भद्रा- मेष, वृष, मिथुन और वृश्चिक राशियों में चंद्रमा होने पर भद्रा स्वर्ग में रहती है, ऐसी स्थिति में पृथ्वी लोक में भद्रा का खराब फल नहीं मिलता है। भद्रा यदि स्वर्ग लोक में है तो किसी भी तरह के जरूरी या शुभ कार्यों को करने की मनाही नहीं होती है। 


पाताल लोक की भद्रा- कन्या, तुला, धनु और मकर राशियों में चंद्रमा होने की स्थिति में भद्रा पाताल लोक में होती है। भद्रा के स्वर्ग अथवा पाताल लोक में रहने की स्थिति में यदि कोई आवश्यक कार्य है और उस दिन भद्रा के कारण बाधा पहुंच रही है तो आवश्यक कार्य को किया जा सकता है। 


रक्षाबंधन में भद्रा काल का समय और शुभ मुहूर्त :



पंचांग के अनुसार, रक्षाबंधन के दिन भद्रा की शुरुआत सुबह 06 बजकर 04 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन दोपहर 01 बजकर 32 मिनट पर होगा। इस वजह से राखी बांधने का शुभ समय दोपहर 01 बजकर 32 मिनट से लेकर 04 बजकर 20 मिनट तक है। इसके बाद प्रदोष काल में शाम 06 बजकर 56 मिनट से लेकर 09 बजकर 08 मिनट तक है जिसमे राखी बांधी जा सकती है। कुछ गणनाओं के अनुसार ये भी कहा जा रहा है कि इस बार रक्षाबंधन के दिन भद्रा पाताल लोक में है और यदि कोई बहुत जरूरी शुभ कार्य है तो वो किया जा सकता है, हालांकि कुछ ज्योतिषी इस काल में रक्षाबंधन मनाने की मनाही कर रहे हैं।


रक्षाबंधन की शुरुआत कैसे हुई, इस त्योहार का इतिहास क्या है और सबसे पहले इसे किसने मनाया था, भक्तवत्सल पर इनसे जुड़े आर्टिकल भी उपलब्ध हैं जिनके जरिए आप रक्षाबंधन समेत अन्य त्योहारों की विस्तृत जानकारी ले सकते हैं।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

हिंदू कैलेंडर के अनुसार होली का त्योहार फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन से पहले होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

मै हूँ बेटी तू है माता: भजन (Main Hoon Beti Tu Hai Mata)

मै हूँ बेटी तू है माता,
ये है जनम-जनम का नाता ।

मुझे रंग दे ओ रंगरेज (Mujhe Rang De O Rangrej)

मुझे रंग दे ओ रंगरेज,
चुनरिया सतरंगी,