Jhulelal Jayanti 2025: भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव के दिन मनाई जाती है चेटी चंड, जानिए इसे मनाने की विधि
झूलेलाल जयंती, जिसे चेटीचंड के नाम से भी जाना जाता है, सिंधी समुदाय के लिए एक पवित्र और महत्वपूर्ण दिन होता है। यह पर्व चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है, जो हिंदू नववर्ष के प्रारंभिक दिनों में आता है। भगवान झूलेलाल को जल देवता और न्याय के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। यह दिन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सिंधी समाज की सांस्कृतिक विरासत और संप्रदायिक सौहार्द्र का भी प्रतीक माना जाता है।
चेटीचंड का महत्व
- भगवान झूलेलाल को सिंधी समाज में जल देवता का रूप माना जाता है। वे सामाजिक एकता, शांति और समृद्धि के प्रतीक हैं।
- चेटीचंड पर्व को मनाने का मुख्य उद्देश्य समाज में भाईचारे की भावना को बनाए रखना और धार्मिक स्वतंत्रता को महत्व देना है।
- भगवान झूलेलाल को जल का देवता माना जाता है, इसलिए जल की पूजा विशेष रूप से की जाती है।
- यह पर्व सिंधी समाज की परंपराओं और विरासत को संरक्षित रखने का कार्य करता है।
- चेटीचंड को सिंधी नववर्ष के रूप में भी देखा जाता है, जो नए अवसरों और खुशहाली की शुरुआत का प्रतीक होता है।
- इस दिन शोभायात्रा, भजन-कीर्तन और सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है, जिससे समाज में आपसी प्रेम और सद्भाव बढ़ता है।
झूलेलाल जयंती की पूजा विधि
इस दिन सिंधी समुदाय के लोग विशेष पूजा विधि अपनाते हैं:
- लकड़ी का छोटा मंदिर बनाया जाता है, जिसमें एक लोटे में जल और ज्योति प्रज्वलित की जाती है।
- इसे बहिराणा साहिब कहा जाता है और इसे सिर पर उठाकर भक्त नृत्य करते हैं।
- भगवान झूलेलाल को जल का देवता माना जाता है, इसलिए जल से भरे लोटे की पूजा की जाती है।
- जल को शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
- सिंधी समाज के लोग परंपरागत वेशभूषा में झूलेलाल जी की झांकी निकालते हैं।
- इस दौरान भक्तगण छेज नृत्य करते हैं और भजन-कीर्तन गाते हैं।
- इस दिन लंगर (भंडारे) का आयोजन किया जाता है।
- गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता की जाती है।
भगवान झूलेलाल की कथा
भगवान झूलेलाल की कथा 10वीं सदी से जुड़ी हुई है, जब सिंध प्रांत में मीरक शाह नामक एक अत्याचारी शासक का शासन था।
- मीरक शाह अपनी प्रजा पर अत्याचार करता था और धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करता था।
- जनता ने भगवान से प्रार्थना की कि वे उनकी रक्षा करें।
- चैत्र शुक्ल द्वितीया संवत 1007 को नसरपुर में माँ देवकी और पिता रतनराय के घर भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ।
- उन्हें उदयचंद नाम दिया गया।
- मीरक शाह ने जब झूलेलाल जी को मारने का प्रयास किया, तब उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से उसका महल जला दिया और उसकी सेना को बेबस कर दिया।
- शासक ने अपनी हार स्वीकार कर ली और भगवान झूलेलाल के सामने नतमस्तक हो गया।
- झूलेलाल जी ने समाज को धार्मिक स्वतंत्रता, शांति और भाईचारे का संदेश दिया।
- वे सर्वधर्म समभाव के प्रतीक बन गए।
चेटीचंड कैसे मनाया जाता है?
भारत के विभिन्न राज्यों जैसे राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में रहने वाले सिंधी समुदाय के लोग इस पर्व को उत्साह के साथ मनाते हैं:
- झूलेलाल जी की झांकी निकाली जाती है।
- सिंधी समाज के लोग पारंपरिक परिधान में छेज नृत्य करते हैं।
- जल की पूजा और बहिराणा साहिब की शोभायात्रा होती है।
- लंगर का आयोजन किया जाता है।
- धार्मिक प्रवचन और भजन-कीर्तन किए जाते हैं।