नवीनतम लेख

क्यों मनाई जाती है गोपाष्टमी, जानिए पूजा विधि

Gopashtami 2024: कब मनाई जा रही गोपाष्टमी? पौराणिक कथा के साथ जानिए पूजा विधि और महत्व 


गोपाष्टमी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो भगवान कृष्ण के गौ-पालन और लीलाओं की याद दिलाता हैं। गोपाष्टमी दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें गोप का अर्थ है "गायों का पालन करने वाला" या "गोपाल" और अष्टमी का अर्थ हैं अष्टमी तिथि या आठवां दिन। इसे "गौ-पालन की अष्टमी" या "गोपाल की अष्टमी" भी कह सकते हैं। यह त्योहार गायों की पूजा और प्रार्थना करने के लिए समर्पित है। हिंदू संस्कृति में, गायों को ‘गौ माता’ कहा जाता है और उनकी देवी की तरह पूजा की जाती है। बछड़ों और गायों की पूजा और प्रार्थनाऐं करने का अनुष्ठान गोवत्स द्वादशी के त्यौहार के समान है जो कि महाराष्ट्र राज्य में मनाया जाता है। तो चलिए जानते हैं गोपाष्टमी का पर्व इस साल यानी 2024 में कब मनाया जा रहा है साथ ही जानेंगे इस दिन का महत्व, पौराणिक कथा और पूजा विधि के बारे में भी। 


गोपाष्टमी 2024 कब है? 


गोपाष्टमी हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाता है। पंचांग के अनुसार इस साल यानी 2024 में गोपाष्टमी तिथि की शुरूआत 8 नवंबर रात 11 बजकर 56 मिनट से होगी, जो 9 नवंबर रात 10 बजकर 45 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार गोपाष्टमी का पर्व 9 नवंबर को मनाया जाएगा। 


गोपाष्टमी की पूजा विधि


  • गोपाष्टमी के दिन प्रातः काल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा करने से पहले मन को शांत और शुद्ध रखना आवश्यक माना जाता है।
  • अपने घर के पूजा स्थल या मंदिर को साफ करें और सजाएं। आप रंगोली बनाकर और दीप जलाकर पूजा स्थल को सुंदर बना सकते हैं।
  • गोवर्धन पर्वत की एक छोटी प्रतिमा या तस्वीर को पूजा स्थान पर स्थापित करें। आप चाहें तो गोबर से स्वयं गोवर्धन पर्वत का एक छोटा सा मॉडल भी बना सकते हैं।
  • गोवर्धन पर्वत को सुंदर फूलों, मालाओं, रोली, चंदन और धूप से सजाएं।
  • भगवान कृष्ण, राधा रानी, गोवर्धन पर्वत और गोपी-गोपालों की स्थापित मूर्तियों का विधिवत पूजन करें। 
  • उन्हें गंगाजल अर्पित करें, चंदन का टीका लगाएं और पुष्पांजलि अर्पित करें। इसके बाद, भगवान कृष्ण को उनका प्रिय भोग जैसे पंचामृत, लड्डू या मीठा पकवान अर्पित करें।
  • गोपाष्टमी के दिन गायों का विशेष महत्व होता है। यदि संभव हो तो गायों को स्नान कराएं और उन्हें हरी घास खिलाएं। 
  • आप गायों को गुड़ या फल भी खिला सकते हैं। इसके बाद गाय के गोबर से बने उपले से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करें।
  • इस दिन गौ माता के सींगो पर चुनड़ी का पट्टा बांधा जाता है।
  • गाय माता की परिक्रमा भी की जाती हैं। सुबह गायों की परिक्रमा कर उन्हें चराने बाहर ले जाते है।
  • इस दिन ग्वालों को भी दान दिया जाता हैं। कई लोग इन्हें नये कपड़े देकर तिलक लगाते हैं।
  • गोपाष्टमी के पर्व पर ब्राह्मणों को भोजन कराने और दान देने का भी विधान है। आप अपनी श्रद्धा अनुसार दक्षिणा दे सकते हैं और वस्त्र, अनाज आदि का दान भी कर सकते हैं।
  • पूजा के उपरांत  गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करें और आरती उतारें। आरती के बाद प्रसाद का वितरण करें और स्वयं भी ग्रहण करें।
  • आप गोपाष्टमी के पर्व पर भगवान कृष्ण के भजन-कीर्तन का आयोजन कर सकते हैं। इससे वातावरण भक्तिमय हो जाता है और मन को शांति मिलती है।


गोपाष्टमी से जुड़ी पौराणिक कथाएं 


1. गोपाष्टमी के उत्सव से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, गायों को भगवान कृष्ण की सबसे प्रिय माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा। तब वे अपनी मैया यशोदा से जिद्द करने लगे कि वे अब बड़े हो गये हैं और बछड़े को चराने के बजाय वे गैया चराना चाहते हैं। उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी। उनके हठ के आगे मैया को हार माननी पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्दबाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया। भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी कि अब वे गैया ही चरायेंगे। नन्द बाबा गैया चराने की शुरुआत करने का शुभ मुहूर्त पूछने शांडिल्य ऋषि के पास पहुंचे और बड़े अचरज में आकर ऋषि ने कहा कि, अभी इसी समय के आलावा अगले साल तक कोई श्रेष्ठ मुहूर्त नहीं हैं। इसीलिए अष्टमी तिथि से श्री कृष्ण ने गाय चराने की शुरुआत की जिसे गोपाष्टमी के नाम से जाना जाता है। 


श्रीकृष्ण को गोपाल और गोविंद क्यों कहा जाता हैं? 


जब श्री कृष्ण ने गैया पालन शुरू किया। उस दिन माता ने अपने कान्हा को बहुत सुन्दर तैयार किया। मोर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाये और सुंदर सी पादुका पहनने दी लेकिन कान्हा ने वे पादुकायें नहीं पहनी। उन्होंने मैया से कहा अगर तुम इन सभी गैया को चरण पादुका पैरों में बांधोगी तब ही मैं यह पहनूंगा। मैया ये देख भावुक हो गईं और कृष्ण पैरों में बिना कुछ पहने अपनी गैया को चारण के लिए ले गए। गौ चरण करने के कारण ही श्री कृष्णा को गोपाल या गोविन्द के नाम से भी जाना जाता है।


2. एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान इंद्र अपने अहंकार के कारण वृंदावन के सभी लोगों को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने बृज के पूरे क्षेत्र में बाढ़ लाने का फैसला किया ताकि लोग उनके सामने झुक जाएं और इसलिए वहां सात दिन तक बारिश हुई। भगवान श्रीकृष्ण को एहसास हुआ कि क्षेत्र और लोग खतरे में हैं, अतः उन्हें बचाने के लिए उन्होंने सभी प्राणियों को आश्रय देने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। आठवें दिन, भगवान इंद्र को उनकी गलती का एहसास हुआ और बारिश बंद हो गई। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। भगवान इंद्र और भगवान श्रीकृष्ण पर सुरभी गाय ने दूध की वर्षा की और भगवान श्रीकृष्ण को गोविंदा घोषित किया जिसका मतलब है गायों का भगवान। यह आठवां दिन था जिसे अष्टमी कहा जाता है, वह विशेष दिन गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है।


3. गोपाष्टमी से जुड़ी एक और कथा ये भी है कि राधा भी गाय को चराने के लिए वन में जाना चाहती थी, लेकिन लड़की होने की वजह से सभी उन्हे मना ऐसा करने से मना कर देते थे। जिसके बाद राधा को एक तरकीब सूझी, उन्होंने ग्वाला जैसे कपड़े पहने और वन में श्रीकृष्ण के साथ गाय चराने चली गईं। 


गोपाष्टमी का महत्व 


गायों को हिंदू धर्म और संस्कृति की आत्मा माना जाता है। उन्हें शुद्ध माना जाता है और हिंदू देवताओं की तरह उनकी पूजा भी की जाती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि एक गाय के अंदर 33 कोटि देवी-देवता निवास करते हैं और इसलिए गाय हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखती हैं। गाय को आध्यात्मिक और दिव्य गुणों की स्वामिनी कहा गया है और यह देवी पृथ्वी का एक और रूप है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, गोपाष्टमी की पूर्व संध्या पर गाय की पूजा करने वाले व्यक्तियों को एक खुशहाल जीवन और अच्छे भाग्य का आशीर्वाद मिलता है। यह भक्तों को उनकी इच्छाओं को पूरा करने में भी मदद करता है।


मां की हर बात निराली है(Maa Ki Har Baat Nirali Hai)

माँ की हर बात निराली है
श्लोक – पास की सुनती है,

आजा कलयुग में लेके, अवतार ओ भोले (Aaja Kalyug Me Leke, Avtar O Bhole)

अवतार ओ भोले,
अपने भक्तो की सुनले,

मेरे सतगुरु दीन दयाल(Mere Satguru Den Dayal)

मेरे सतगुरु दीन दयाल,
मैं तेरा नाम जपा करूं,

छठ पूजा: पहिले पहिल, छठी मईया व्रत तोहार (Chhath Puja: Pahile Pahil Chhathi Maiya)

पहिले पहिल हम कईनी,
छठी मईया व्रत तोहार ।

यह भी जाने