Gangaur Vrat Katha: सुहागिन महिलाओं के लिए क्यों खास माना जाता है गणगौर व्रत, जानिए इस व्रत परंपरा के पीछे की वजह
गणगौर व्रत भारतीय संस्कृति में स्त्रियों की श्रद्धा, प्रेम और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए इस व्रत को करती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इसका पालन करती हैं। गणगौर व्रत हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। 2025 में यह पर्व 31 मार्च, सोमवार को मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएं पारंपरिक वस्त्र धारण करती हैं, सोलह श्रृंगार करती हैं और गणगौर माता की पूजा-अर्चना कर अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मांगती हैं। व्रत के दौरान शिव-पार्वती की विशेष पूजा की जाती है और पारंपरिक लोकगीत गाए जाते हैं।
गणगौर व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए एक विशेष पर्व
शास्त्रों के अनुसार, गणगौर शब्द गण (भगवान शिव) और गौर (माता पार्वती) से मिलकर बना है। एक कथा के अनुसार, चैत्र शुक्ल तृतीया को भगवान शिव, माता पार्वती और नारद मुनि एक गांव में पहुंचे। माता पार्वती ने वहां नदी किनारे मिट्टी से शिव जी की मूर्ति बनाकर पूजा की और मिट्टी का ही भोग लगाकर उसे प्रसाद रूप में ग्रहण किया। जब शिव जी ने पूछा कि उन्होंने क्या खाया, तो माता ने झूठ कहा कि उन्होंने दूध-चावल ग्रहण किया है।
शिव जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से यह देख लिया और तपस्या से बनाए गए मायावी महल में भोजन करने गए। लेकिन जब नारद मुनि दोबारा वहां पहुंचे, तो महल गायब था। तब भगवान शिव ने बताया कि माता पार्वती ने अपने पति की पूजा को छुपाने के लिए यह लीला रची थी। माता पार्वती की श्रद्धा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अखंड सौभाग्य का वरदान दिया। इसलिए माना जाता है कि जो भी स्त्री गणगौर व्रत करती है, उसे माता पार्वती का आशीर्वाद मिलता है और उसका सुहाग अखंड बना रहता है।
गणगौर व्रत 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
- गणगौर व्रत 2025 की तिथि: 31 मार्च 2025 (सोमवार)
शुभ मुहूर्त:
- प्रातः काल – 5:30 AM से 7:30 AM
- संध्या काल – 6:00 PM से 8:00 PM
- व्रत का समापन: अगले दिन गणगौर माता को जल में विसर्जित कर विदाई दी जाती है।
गणगौर व्रत की पूजा विधि
यदि आप पहली बार गणगौर व्रत कर रही हैं, तो सही पूजा विधि का पालन करना आवश्यक है—
- प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और सोलह श्रृंगार करें।
- भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या चित्र की विधिपूर्वक पूजा करें।
- गणगौर माता को सिंदूर, चूड़ियाँ, मेहंदी, बिंदी और कुमकुम अर्पित करें।
- मिट्टी या रेत से मां गौरी की मूर्ति बनाकर उन्हें जल अर्पित करें।
- पारंपरिक गणगौर गीत गाएं – "गोर गोर गोमती, गणगौर माता की जय"।
- व्रत कथा का पाठ करें, जिसमें शिव और पार्वती के विवाह से जुड़ी कथा होती है।
- अगले दिन गणगौर माता की मूर्ति का जल में विसर्जन करें, जो उनके मायके से ससुराल लौटने का प्रतीक है।
गणगौर व्रत का महत्व
गणगौर व्रत भारतीय संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि स्त्रियों की श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक भी है। सुहागिन महिलाओं के लिए पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए। कुंवारी कन्याओं के लिए मनचाहा जीवनसाथी पाने की कामना के लिए। सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू यह पर्व महिलाओं को एकजुट करता है और समाज में खुशी और सौहार्द का वातावरण बनाता है।