फरवरी में इष्टि कब है? जानें शुभ मुहूर्त और तिथि
इष्टि यज्ञ वैदिक काल के प्रमुख अनुष्ठानों में से एक है। संस्कृत में ‘इष्टि’ का अर्थ ‘प्राप्ति’ या ‘कामना’ होता है। यह यज्ञ विशेष रूप से मनोकामना पूर्ति और जीवन में समृद्धि लाने के उद्देश्य से किया जाता है। इसे अग्निहोत्र यज्ञ भी कहा जाता है। इष्टि यज्ञ नवम तिथि और पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है। जिसमें विशेष विधि से अग्नि प्रज्वलन, देवताओं का आह्वान और आहुति दी जाती है। तो आइए, इस आर्टिकल में फरवरी में इष्टि कब है, इसकी तारीख और महत्व के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं।
फरवरी 2025 में कब है इष्टि?
कृषि और प्राकृतिक संतुलन से जुड़े इस अनुष्ठान में प्रकृति के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त किया जाता है। इस यज्ञ में भाग लेने वाले भक्तों को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। बता दें कि साल 2025 में फरवरी महीने में गुरुवार, 13 तारीख को इष्टि है। इस दिन से फाल्गुन महीने का शुभारंभ भी हो जाएगा।
जानिए इष्टि यज्ञ का महत्व
इष्टि यज्ञ को वैदिक परंपराओं में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह देवताओं की कृपा प्राप्त करने और इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। इस यज्ञ में अग्नि देवता को मुख्य रूप से पूजा जाता है और उन्हें आहुति अर्पित की जाती है। इष्टि यज्ञ करने से व्यक्ति को धन, स्वास्थ्य, संतान सुख और आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद मिलता है। यजमान इस यज्ञ में तिल, जौ, घी, अनाज और औषधियों की आहुति देकर अपने पारिवारिक, सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। इष्टि यज्ञ को खासतौर पर फसल की समृद्धि और कृषि चक्र के संतुलन के लिए भी किया जाता है।
इष्टि यज्ञ पूजा विधि
- इष्टि यज्ञ में वैदिक नियमों के अनुसार विशेष पूजा विधि अपनाई जाती है। इसका आरंभ अग्नि प्रज्वलन और मंत्र उच्चारण से होता है।
- यज्ञ करने से पहले यजमान स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करते हैं।
- इसके बाद यज्ञकुंड में अग्नि प्रज्वलित कर देवताओं का आह्वान किया जाता है।
- अब हवन कुंड में घी, तिल, जौ और औषधियों की आहुति दी जाती है।
- यजमान देवताओं की स्तुति कर सुख-समृद्धि और मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
- यज्ञ के अंत में प्रसाद का वितरण किया जाता है।
इष्टि यज्ञ और कृषि का संबंध
इष्टि यज्ञ का कृषि चक्र से गहरा संबंध है। इसमें दी जाने वाली अनाज और औषधियों की आहुति भविष्य में अच्छी फसल और समृद्धि की कामना का प्रतीक है। इस यज्ञ के माध्यम से किसान अपनी भूमि, फसल और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। प्राचीन काल में यह यज्ञ सामाजिक और धार्मिक आयोजन के रूप में भी जाना जाता था, जिसमें ग्रामवासी सामूहिक रूप से भाग लेकर फसल की समृद्धि और सामूहिक कल्याण की प्रार्थना करते थे।