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हिन्दू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। ख़ासकर, पौष मास की अमावस्या को पितरों को प्रसन्न करने और चंद्रदेव की कृपा प्राप्त करने का उत्तम अवसर माना गया है। इस दिन भगवान सूर्य, चंद्रदेव और श्रीहरि की विधिवत पूजा के साथ पिंडदान और तर्पण का विधान है। मान्यता है कि इस तिथि पर चंद्रदेव अपनी सभी कलाओं से परिपूर्ण रहते हैं और उनकी किरणें भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती हैं। शास्त्रों में अमावस्या पर किए जाने वाले विशेष उपायों का उल्लेख मिलता है। जो जीवन के कष्टों को दूर करने में सहायक हैं।
हिन्दू धर्मग्रंथों की मानें तो अमावस्या तिथि का दिन चंद्रदेव की विशेष पूजा के लिए काफ़ी ख़ास माना जाता है। यह दिन पितरों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए भी समर्पित है। पौष मास की अमावस्या को लघु पितृ पक्ष के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पिंडदान, तर्पण और पितृ स्तोत्र का पाठ करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इसके अलावा, यह दिन भगवान सूर्य और श्रीहरि की पूजा के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह माना जाता है कि इस तिथि पर किए गए धार्मिक कार्यों का विशेष पुण्यफल प्राप्त होता है।
अमावस्या तिथि पर चंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए शास्त्रों में कई मंत्रों का उल्लेख किया गया है। इन मंत्रों का जाप श्रद्धा और समर्पण के साथ करने से विशेष लाभ होता है।
1. सुबह स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें।
2. चंद्रदेव, भगवान सूर्य, और श्रीहरि की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
3. तर्पण और पिंडदान करते समय पितृ तिथि का ध्यान रखें।
4. पीपल के वृक्ष को जल अर्पित करें और उसकी परिक्रमा करें।
5. मंत्रों का जाप श्रद्धा के साथ करें।
पौष अमावस्या का दिन आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन की गई पूजा, मंत्र जाप, और दान-पुण्य न केवल पितरों को प्रसन्न करता है, बल्कि भक्तों के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि लाने में सहायक होता है। चंद्रदेव की कृपा से मानसिक संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। इसलिए, इस पवित्र दिन का पूरा लाभ उठाएं और अपने जीवन को अधिक शुभ और मंगलमय बनाएं।