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चंपा षष्ठी मानने के पीछे की वजह

क्यों मनाई जाती है चंपा षष्ठी? जानिए पौराणिक कथा और इसका महत्व


भारत में त्योहारों का विशेष महत्व है। यहां हर दिन किसी न किसी क्षेत्र में कोई पर्व या त्योहार मनाया जाता है। इनमें से कुछ त्योहार न केवल देश में बल्कि विदेशों तक भी प्रचलित होते हैं। भारतीय परंपराओं के अद्वितीय त्योहारों में चंपा षष्ठी का नाम भी प्रमुख है। यह पर्व मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के मार्कंडेय स्वरूप और भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। तो आइए इस लेख में चंपा षष्ठी के बारे में प्रचलित कथा और इसके महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं। 


चंपा षष्ठी का महत्व 


चंपा षष्ठी का पर्व भगवान शिव और उनके पुत्र कार्तिकेय की आराधना का दिन है। इस दिन पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं। पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान शिव व कार्तिकेय की सच्चे मन से पूजा करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

यह दिन ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होती है। क्योंकि,, भगवान कार्तिकेय को मंगल ग्रह का अधिपति माना गया है। जो लोग अपनी कुंडली में मंगल दोष से पीड़ित हैं, उनके लिए यह पर्व विशेष फलदायी होता है। इस दिन पूजा और उपवास करने से उनकी राशि में मंगल का प्रभाव सकारात्मक होता है। 2024 में यह पर्व 7 दिसंबर को मनाया जाएगा। इसे स्कंद षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है और खासतौर पर महाराष्ट्र व कर्नाटक में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।



कथा 1: कार्तिकेय और दैत्य तारकासुर की कथा 


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान कार्तिकेय अपने माता-पिता शिव और पार्वती तथा छोटे भाई गणेश से किसी कारण नाराज होकर कैलाश पर्वत छोड़कर चले गए। वह मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के समीप रहने लगे।

इसी दौरान मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कार्तिकेय ने दैत्य तारकासुर का वध किया। इस तिथि को देवताओं ने उन्हें अपनी सेना का सेनापति नियुक्त किया। चंपा के फूल भगवान कार्तिकेय को प्रिय थे, इसलिए इस दिन को चंपा षष्ठी के नाम से जाना जाने लगा।


कथा 2: दैत्यों के संहार के लिए महादेव का खंडोबा रूप 


एक अन्य कथा के अनुसार, प्राचीन काल में मणि और मल्ह नामक दो दैत्य भाई अपने अत्याचारों से मानव जाति को परेशान कर रहे थे। इन दैत्यों का वध करने के लिए भगवान शिव ने खंडोबा नामक स्थान पर 6 दिनों तक युद्ध किया। इस युद्ध में भगवान शिव ने भैरव और माता पार्वती ने शक्ति का रूप धारण किया। इस युद्ध के अंत में भगवान शिव ने इन दैत्यों का वध किया और खंडोबा स्थान पर शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए। इस विजय की स्मृति में चंपा षष्ठी मनाई जाती है। महाराष्ट्र में भगवान शिव के रुद्रावतार भैरव को मार्तंड-मल्हारी या खंडेराया के नाम से पूजा जाता है।


पापों का होता है नाश


चंपा षष्ठी धार्मिक महत्व रखती है और यह जीवन में शांति और समृद्धि लाने वाला पर्व भी माना जाता है। इस दिन पूजा और व्रत करने से ना सिर्फ केवल पापों का नाश होता है बल्कि सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। भगवान कार्तिकेय और शिव की आराधना से मंगल दोष का प्रभाव भी कम होता है। यह पर्व भक्तों के लिए भगवान की कृपा प्राप्त करने का विशेष अवसर है।


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मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाई जाने वाली काल भैरव जयंती भगवान शिव के पांचवें रूद्र अवतार काल भैरव की उपासना का दिन है।

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