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चैत्र पूर्णिमा पर भूलकर भी ना करें ये काम

Chaitra Purnima Niyam: चैत्र पूर्णिमा पर इन चीजों से रहें दूर, सुख-शांति के लिए कारगर होंगे ये नियम 

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को चैत्र पूर्णिमा कहा जाता है। यह तिथि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व होता है, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। क्योंकि यह दिन बहुत शुभ होता है, इसलिए इस दिन आध्यात्मिक रूप से कुछ कार्य करना वर्जित है। 

चैत्र पूर्णिमा पर भूलकर भी न करें तामसिक भोजन 

चैत्र पूर्णिमा के दिन तामसिक भोजन का सेवन वर्जित माना गया है। ऐसा करने से मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और आध्यात्मिक उन्नति में बाधा आती है। ऐसे में इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए, जिससे शरीर और मन की शुद्धि बनी रहे। साथ ही, चैत्र पूर्णिमा के दिन ईमानदारी का पालन अवश्य करना चाहिए। क्योंकि इस दिन झूठ बोलना, धोखा देना या किसी भी प्रकार का छल-कपट करना बहुत अशुभ माना जाता है, जिससे चंद्र देवता नाराज होते हैं और जीवन में कठिनाइयां बढ़ती हैं। 

सूर्यास्त के बाद भूलकर भी न लगाएं झाड़ू

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां लक्ष्मी को स्वच्छता बहुत प्रिय है। इसलिए, चैत्र पूर्णिमा के दिन घर और पूजा स्थल को साफ-सुथरा रखना चाहिए। गंदगी होने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती है और आर्थिक समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। ऐसा कहा जाता है कि सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू लगाना या पोछा करना अशुभ होता है। यह करने से धन और समृद्धि का नाश होता है। इसलिए, सफाई के कार्यों को दिन में ही कर लेना चाहिए। 

चैत्र पूर्णिमा भूलकर भी न करें महिलाओं का अनादर 

चैत्र पूर्णिमा के दिन मन को शांत और संयमित रखना चाहिए। साथ ही, इस दिन भूल कर भी गुस्सा, वाद-विवाद या लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए है, क्योंकि इससे नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और आशीर्वाद की प्राप्ति में बाधा आती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चैत्र पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से महिलाओं और बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए। उनका आदर करने से देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है और जीवन से कठिनाइयां दूर होती हैं। 

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श्रीराम और होली की कथा

होली का त्योहार सिर्फ द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा नहीं है, बल्कि इसका संबंध त्रेतायुग और भगवान श्रीराम से भी गहरा है। कहा जाता है कि त्रेतायुग में भी होली मनाई जाती थी, लेकिन तब इसका रूप आज से थोड़ा अलग था। ये सिर्फ रंगों का खेल नहीं था, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व से जुड़ा हुआ एक अनोखा त्योहार था।