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भीष्म पितामह गंगा और महाराज शांतनु के आठवें पुत्र थे। गंगा ने अपने पहले सात पुत्रों को जन्म लेते ही नदी में प्रवाहित कर दिया था। इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है।
राजा प्रतीप, जो शांतनु के पिता थे, गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। गंगा ने उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा, लेकिन प्रतीप ने कहा कि वह उन्हें अपनी पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करेंगे। जब प्रतीप को पुत्र हुआ, तो उसका नाम शांतनु रखा गया। बड़े होने पर शांतनु का विवाह गंगा से हुआ, लेकिन एक शर्त पर – राजा शांतनु गंगा के किसी भी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
गंगा और शांतनु के आठ पुत्र हुए, लेकिन गंगा ने पहले सातों पुत्रों को नदी में बहा दिया। राजा शांतनु इस क्रूर कर्म को देखकर भी अपनी प्रतिज्ञा के कारण कुछ नहीं कह सके। जब गंगा आठवें पुत्र को भी बहाने लगीं, तो शांतनु से रहा नहीं गया और उन्होंने गंगा को रोक दिया।
गंगा ने तब बताया कि उनके ये पुत्र अष्ट वसु थे, जो ऋषि वशिष्ठ के शाप के कारण धरती पर जन्म लेने को बाध्य हुए थे। गंगा ने उन्हें कष्टों से बचाने के लिए मुक्त कर दिया। लेकिन आठवें वसु, जो बाद में भीष्म पितामह कहलाए, को राजा शांतनु ने बचा लिया। शाप के कारण भीष्म को जीवनभर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।