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माघ मास में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी कहते हैं। इसे तिल द्वादशी भी कहते हैं। भीष्म द्वादशी को माघ शुक्ल द्वादशी नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि पांडवों ने इस दिन पितामह भीष्म का अंतिम संस्कार किया था। इस दिन पितरों के लिए तर्पण शुभ माना जाता है। साथ ही भीष्म द्वादशी का व्रत करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। तो आइए, इस आर्टिकल में विस्तार पूर्वक जानते हैं कि भीष्म पितामह का अंतिम संस्कार कहां, कब और किसने किया था।
सनातन धर्म शास्त्रों की माने तो कि महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने कौरवों का साथ दिया और कौरवों की तरफ से लड़ाई लड़ी। उन्होंने कौरवों का नेतृत्व भी किया। एक समय ऐसा भी आया, जब धनुर्धर अर्जुन ने पितामह भीष्म पर वार करने से इंकार कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भविष्य से अवगत कराया। इसमें भीष्म पितामह के पूर्व और वर्तमान जन्म से लेकर मृत्यु की जानकारी दी।
इसके बाद ही अर्जुन ने पितामह से युद्ध किया। इस युद्ध में अर्जुन के बाणों से पितामह भीष्म घायल हो गए। परंतु, सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण भीष्म पितामह ने अपने प्राणों का त्याग नहीं किया। और बाणों की शैय्या पर ही सूर्य के उत्तरायण होने का लंबा और कठिन इंतजार किया। सूर्य के उत्तरायण होने पर भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग किया था। माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को पितामह भीष्म ने अपनी अंतिम सांस ली।
महाभारत के मुताबिक, भीष्म पितामह का अंतिम संस्कार गंगा तट पर पांडवों द्वारा ही किया गया। यह संस्कार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को हुआ था। इसे भीष्म द्वादशी या गोविंद द्वादशी के नाम से जाना जाता है।
भीष्म पितामह के शव को चंदन की चिता पर रखा गया था। पांडवों ने अपने पितामह के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए सभी संस्कार विधि के अनुसार संपन्न किए। इस प्रक्रिया का नेतृत्व युधिष्ठिर ने किया। भीष्म पितामह के बारे में कुछ और खास बातें: भीष्म पितामह चंद्रवंश के राजा शांतनु और उनकी पहली पत्नी गंगा के पुत्र थे।
बता दें कि भीष्म पितामह ने स्त्रियों पर शस्त्र नहीं उठाने की प्रतिज्ञा की थी। इसी कारण उन्होंने शिखंडी पर वार नहीं किया और युद्ध में परास्त हो गए। इसके बाद भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर 18 दिनों तक रहना पड़ा था।
भीष्म द्वादशी पर भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की आराधना करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं व सामर्थय के अनुसार दक्षिणा दें। इस दिन स्नान-दान करने से सुख-सौभाग्य, धन-संतान की प्राप्ति होती है। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करें। इस उपवास से समस्त पापों का नाश होता है। इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भीष्म द्वादशी का उपवास संतोष प्रदान करता है।