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महाभारत में अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर लिटा दिया था। उस समय सूर्य दक्षिणायन था। इसलिए, भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया और माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अपने प्राण त्यागे। इसके 3 दिन बाद ही द्वादशी तिथि पर भीष्म पितामह के लिए तर्पण और पूजन की परंपरा प्रथा है। द्वादशी के दिन पिंड-दान, तर्पण, ब्राह्मण भोज और दान-पुण्य करना शुभ माना जाता है। तो आइए, इस आर्टिकल में 2025 में होने वाली भीष्म द्वादशी की तिथि, पूजा विधि और मुहूर्त के बारे में जानते हैं।
इस वर्ष भीष्म द्वादशी 09 फरवरी 2025 को रविवार के दिन मनाई जाएगी। द्वादशी तिथि आरंभ 08 फरवरी 2025, 20:15 से होगा। जबकि, द्वादशी की समाप्ति 09 फरवरी 2025 को होगी। अतः उदया तिथि के अनुसार, भीष्म द्वादशी 09 फरवरी रविवार को मनाई जाएगी।
भीष्म द्वादशी के दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए। सूर्य देव का पूजन करना चाहिए। तिल, जल और कुशा से भीष्म पितामह के निमित्त तर्पण करना चाहिए। तर्पण का कार्य अगर खुद ना हो पाए तो किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा इसे कराया जा सकता है। ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन अपने पूर्वजों का तर्पण करने का भी विधान बताया गया है। साथ ही इस दिन भीष्म कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन विधि विधान के साथ पूजन इत्यादि करने से व्यक्ति के कष्ट दूर होते हैं। पितृरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस पूजन से पितृ दोष से भी मुक्ति प्राप्त होती है।
भीष्म द्वादशी का दिन तिलों के दान की महत्ता भी दर्शाता है। इस दिन में तिलों से हवन करना। पानी में तिल दाल कर स्नान करना और तिल का दान करना ये सभी अत्यंत उत्तम कार्य बताए गए हैं। तिल दान करने से अपने जीवन में खुशियों का आगमन होता है। सफलता के दरवाजे खुलते हैं। बता दें कि तिल के दान का फल अग्निष्टोम यज्ञ के समान होता है। तिल दान देने वाले को गोदान करने का फल मिलता है।
पुराणों के अनुसार भीष्म द्वादशी व्रत करने से जहां मनुष्य की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पूरी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ यह व्रत रखने से समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाला माना जाता है। इस व्रत की पूजा एकादशी के उपवास के तरह की जाती है। भीष्म द्वादशी के दिन नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा की जाती है तथा भीष्म द्वादशी कथा पढ़ी या सुनी जाती है। इस दिन पूर्वजों का तर्पण करने का विधान है। मान्यतानुसार माघ शुक्ल द्वादशी तिथि को भीष्म पितामह की पूजा करने से पितृ देव प्रसन्न होते हैं तथा सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करते हैं। यह व्रत रोगनाशक माना जाता है।