भीष्म अष्टमी क्यों मनाई जाती है? जानें कथा और महत्व
भीष्म अष्टमी क्यों मनाई जाती है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के युद्ध में गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी भीष्म पितामह ने अपने इच्छामृत्यु के वरदान के कारण तत्काल देह त्याग नहीं किया। उन्होंने अपनी मृत्यु के लिए शुभ मुहूर्त का इंतजार किया।
हिंदू धर्म में मान्यता है कि सूर्यदेव वर्ष में आधे समय दक्षिण दिशा की ओर रहते हैं, जिसे अशुभ समय माना जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। जब सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ने लगते हैं, तो इसे उत्तरायण कहा जाता है, और यह शुभ कार्यों के लिए उत्तम समय माना जाता है।
भीष्म पितामह ने इसी शुभ काल को ध्यान में रखते हुए माघ शुक्ल अष्टमी के दिन देह त्याग करने का निर्णय लिया। इस दिन लोग उनकी आत्मा की शांति के लिए एकोदिष्ट श्राद्ध करते हैं और पितरों के उद्धार के लिए तर्पण करते हैं।
भीष्म अष्टमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
- भीष्म अष्टमी तिथि: बुधवार, 5 फरवरी 2025
- तिथि प्रारंभ: 5 फरवरी 2025, दोपहर 02:30 बजे
- तिथि समाप्ति: 6 फरवरी 2025, दोपहर 12:35 बजे
- पूजन का शुभ समय: 5 फरवरी 2025, प्रातः 11:26 बजे से दोपहर 01:38 बजे तक
भीष्म अष्टमी की व्रत कथा
हस्तिनापुर के राजा शांतनु का विवाह देवी गंगा से हुआ था। उनके पुत्र देवव्रत (जो आगे चलकर भीष्म पितामह कहलाए) बचपन से ही अत्यंत बुद्धिमान और पराक्रमी थे। उन्होंने महर्षि परशुराम से शस्त्रविद्या सीखी और एक कुशल योद्धा बने।
बाद में राजा शांतनु ने सत्यवती नाम की कन्या से विवाह करने की इच्छा जताई। सत्यवती के पिता ने शर्त रखी कि केवल उनकी संतान ही हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठेगी। अपने पिता की इच्छा को सर्वोपरि रखते हुए देवव्रत ने न केवल सिंहासन छोड़ने की प्रतिज्ञा ली, बल्कि आजीवन ब्रह्मचर्य का भी व्रत लिया। उनकी इस प्रतिज्ञा के कारण उन्हें "भीष्म" की उपाधि मिली।
महाभारत युद्ध और भीष्म पितामह का बलिदान
महाभारत युद्ध के दौरान भीष्म पितामह कौरवों की ओर से सेनापति बने। उनकी उपस्थिति में पांडव युद्ध में विजय प्राप्त नहीं कर सकते थे। इस स्थिति से बचने के लिए पांडवों ने एक रणनीति बनाई। उन्होंने शिखंडी को भीष्म के सामने खड़ा कर दिया, क्योंकि भीष्म ने प्रतिज्ञा की थी कि वे किसी स्त्री या स्त्रीरूपी पुरुष पर शस्त्र नहीं उठाएंगे।
शिखंडी को देखते ही भीष्म ने अपने हथियार त्याग दिए, और इस अवसर का लाभ उठाकर अर्जुन ने उन पर बाणों की वर्षा कर दी। घायल होकर भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर गिर पड़े, लेकिन अपनी इच्छामृत्यु के वरदान के कारण उन्होंने तुरंत प्राण नहीं त्यागे।
भीष्म पितामह की अंतिम शिक्षा
भीष्म पितामह 18 दिनों तक बाणों की शय्या पर लेटे रहे और मृत्यु से ठीक पहले धर्मराज युधिष्ठिर को जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाए। उन्होंने धर्म, कर्तव्य, न्याय और नीतिशास्त्र पर उपदेश दिए, जिन्हें आज भी "भीष्म नीति" के रूप में जाना जाता है।
आखिरकार, माघ शुक्ल अष्टमी के दिन, सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश करने के पश्चात, भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग दिए। उनके महान बलिदान और निष्ठा को याद करते हुए हर वर्ष भीष्म अष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
भीष्म अष्टमी का महत्व
- पितृ दोष से मुक्ति: इस दिन जल, कुश और तिल से तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती है और पितृ दोष समाप्त होता है।
- पापों का नाश: मान्यता है कि भीष्म अष्टमी का व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
- श्राद्ध अनुष्ठान: जो लोग अपने पिता को खो चुके हैं, वे भीष्म पितामह के नाम पर श्राद्ध करते हैं।
- धर्म और नीति शिक्षा: भीष्म पितामह द्वारा दी गई शिक्षाएँ आज भी नीति और धर्म का सही मार्ग दिखाती हैं।