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बच्छ बारस शुभ मूहूर्त, पूजा विधि (Bachh Baras Shubh Muhrat, Puja Vidhi)

लंबी आयु के लिए किया जाता है बच्छ बारस व्रत, जानिए महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त  


बच्छ बारस जिसे गोवत्स द्वादशी भी कहा जाता है। ये पर्व आगामी 28 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा। यह त्योहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है और संतान की लंबी आयु और समृद्धि के लिए महिलाएं इस दिन व्रत करती हैं। साथ ही, जिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति नहीं होती वे भी इस व्रत को संतान प्राप्ति की कामना के लिए करती हैं। तो आइए इस आलेख में हम आपको बच्छ बारस पर्व और इसके महत्व के बारे में विस्तार से बताते हैं। 


बच्छ बारस का मुहूर्त 2024


  • प्रदोषकाल मुहूर्त: शाम 05:39 बजे से रात 08:13 बजे तक
  • द्वादशी तिथि प्रारंभ: 28 अक्टूबर 2024, सुबह 7:50 बजे
  • द्वादशी तिथि समाप्त: 29 अक्टूबर 2024, सुबह 10:31 बजे


बच्छ बारस का महत्व


बच्छ बारस का पर्व विशेष रूप से गाय और उसके बच्छड़े की पूजा से जुड़ा हुआ है। इसे नंदिनी व्रत भी कहा जाता है, जहां नंदिनी को एक दिव्य गौ माता के रूप में पूजा जाता है। महाराष्ट्र में इसे वसु बारस के नाम से मनाया जाता है और यह दिवाली उत्सव की शुरुआत का पहला दिन माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन महिलाएं गाय और बच्छड़े की पूजा कर अपने बच्चों की लंबी उम्र की कामना करती हैं। यह पर्व जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाने वाला माना जाता है। इसके पीछे यह मान्यता भी है कि इस व्रत और पूजा से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और संतान का भविष्य उज्ज्वल होता है।


क्या है बच्छ बारस व्रत कथा? 


प्राचीन समय में एक साहूकार था जिसके सात बेटे थे। उसने एक सुंदर तालाब खुदवाया, लेकिन 12 सालों तक भी तालाब में पानी नहीं भरा। परेशान होकर साहूकार विद्वान पंडितों के पास गया। पंडितों ने कहा, "तालाब तभी भरेगा जब आप अपने बड़े बेटे या पोते की बलि देंगे।" पूरी कथा bhaktVatsal की वेबसाइट पर उपलब्ध है।  


बच्छ बारस पूजा विधि 


  • स्नान और तैयारी: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • गाय और बच्छड़े की पूजा: दूध देने वाली गाय और उसके बच्छड़े को स्नान कराएं। उनके माथे पर सिंदूर और हल्दी का तिलक लगाएं। कुछ स्थानों पर गाय के सींगों को सजाया जाता है।
  • मिट्टी की मूर्तियां बनाएं: जिन घरों में गाय उपलब्ध नहीं होती, वहां मिट्टी से गाय और बच्छड़े की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा की जाती है।
  • धूप और दीप जलाएं: पूजा के दौरान धूप और दीप जलाकर आरती करें।
  • प्रसाद अर्पण: गायों और बच्छड़ों को चना, गेहूं, मूंग और अंकुरित अनाज का प्रसाद चढ़ाएं।
  • व्रत कथा का पाठ: पूजा के बाद बच्छ बारस की कथा सुनना और सुनाना अत्यंत शुभ माना जाता है।


व्रत के नियम


  • इस दिन महिलाएं दूध और दूध से बने उत्पादों का सेवन नहीं करतीं।
  • गेहूं से बनी वस्तुओं की जगह बाजरे की रोटी और अंकुरित अनाज खाया जाता है।
  • भोजन में चाकू से काटी गई वस्तुओं का उपयोग वर्जित है।
  • दिनभर व्रत रखने के बाद गोधूलि बेला में गौमाता की आरती की जाती है और तभी भोजन ग्रहण किया जाता है।
  • इस दिन मोठ और चने जैसी द्विदलीय वस्तुएं विशेष रूप से पूजा में अर्पित की जाती हैं।


गोवत्स का महत्व और मान्यताएं


बच्छ बारस के दिन महिलाएं अपने बच्चों की मंगल-कामना और लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं। इस दिन गाय और बच्छड़े की पूजा से न केवल परिवार में समृद्धि आती है, बल्कि संतान की उन्नति और सफलता भी सुनिश्चित होती है। वहीं, पौराणिक मान्यता के अनुसार, गाय के शरीर में सभी देवी-देवताओं का वास होता है, जो इस प्रकार है। 

  • पीठ पर ब्रह्मा का निवास है।
  • गले में विष्णु और मुख में रुद्र विराजमान हैं।
  • पांवों में पर्वत, गौमूत्र में पवित्र नदियां, और नेत्रों में सूर्य और चंद्रमा का वास माना गया है।


व्रत का फल और आशीर्वाद


इस दिन व्रत करने और विधिपूर्वक पूजा करने से दोगुना फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि गोवत्स द्वादशी के व्रत से भगवान कृष्ण का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।


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