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भगवान अपने भक्तों को कब, कहा, क्या और कितना दे दें यह कोई नहीं जानता। लेकिन भगवान को अपने सभी भक्तों का सदैव ध्यान रहता है। वे कभी भी उन्हें नहीं भूलते। भगवान उनके भले के लिए और कल्याण के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। भगवान विष्णु ने अपने हर अवतार की तरह कृष्णावतार में भी भक्तों के कष्टों को दूर किया है।
भक्त वत्सल की जन्माष्टमी स्पेशल सीरीज ‘श्रीकृष्ण लीला’ के पांचवे एपिसोड में आज हम आपको कन्हैया की करुणा की एक मार्मिक कहानी सुनाने जा रहे हैं जो भगवान के कोमल ह्रदय और भक्त के प्रति स्नेह के सबसे बड़े उदाहरणों में से एक है।
एक बार की बात है। भगवान श्रीकृष्ण बाल रूप में नन्द भवन में खेल रहे थे। तभी महल के सामने के एक के पेड़ के नीचे उन्हें एक बूढी अम्मा दिखाई दी। वे उन्हें बड़े आश्चर्य से देखने लगे। वो अम्मा अपनी फटी पुरानी साड़ी से अपना पसीना पोंछते हुए सुस्ता रही थी। उनके पास में रखी एक टोकनी में बहुत से फल थे। असल में वो गोकुल की फल वाली थी जो गली-गली घूमकर फल बेचा करती थी। इस समय वो आराम करने के लिए पेड़ की छांव में रुकी थी। कान्हा उन्हें देखते रहे। तभी अम्मा की नजर भी मोहन पर पड़ी। कृष्ण को देखते ही वो भाव विभोर हो गई और मुस्कुराते हुए उन्हें देखने लगी। मानों उनकी सारी थकान उतर गई हो।
तभी कृष्ण दौड़ते हुए महल के अन्दर गए और अपनी छोटी सी मुट्ठी में अनाज लेकर बाहर आए। वे अनाज के बदले अम्मा से फल खरीदना चाहते थे, लेकिन उनकी छोटी सी मुट्ठी से अनाज के दाने फिसलकर जमीन पर गिरते जा रहे थे। ऐसे में जब तक वो अम्मा के पास पहुंचते तब तक उनकी मुट्ठी में दो-चार दाने ही बचे थे। अम्मा ने जैसे ही कान्हा की मुट्ठी देखी वो प्रसन्नता से हंसने लगी। उन्हें बाल कृष्ण की इस लीला पर बड़ा प्यार आया और कान्हा की हथेली पर चिपके वही दो-चार दाने अपनी टोकरी में रख लिए। अम्मा ने कन्हैया को कुछ फल दे दिए। वो बड़ी खुश थी की आज भगवान ने उनसे सौदा किया। आज उन्हें फायदे नुकसान की परवाह नहीं थी। उन्होंने अनाज के उन्हीं कुछ दानों को प्रसाद समझ कर रख लिया और घर की ओर चल पड़ी।
लेकिन कान्हा की लीला कान्हा ही जानें। वो अपने भक्तों से कुछ लेते हैं तो बहुत कुछ देते भी हैं। अम्मा के साथ भी मोहन ने ऐसा ही किया। अम्मा जैसे ही अपने घर पहुंची तो देखती हैं कि गोपाल ने उन्हें जो अनाज के दाने दिए थे वे अब हीरे-मोती और जवाहरातों में बदल गए हैं। अम्मा समझ गई कि यह करुणानिधान भगवान श्रीकृष्ण की माया है। उसने मन ही मन भगवन का स्मरण किया। इसके बाद कई सालों तक अम्मा इस लोक के सभी सुख भोग कर भगवान की भक्ति में डूबे रहते हुए समय व्यतीत करने लगी। श्रीकृष्ण की भक्ति के कारण अंत में वो अम्मा वैकुंठ की वासी हुई।