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अगर आपका मथुरा और वृंदावन घूमने का प्लान पूरा नहीं हो पा रहा, तो परेशान ना हो। हम आपके लिए लेकर आए हैं दिल्ली एनसीआर के इस्कॉन टेंपल की जानकारी, जहां आप राधा-कृष्ण के दर्शन कर सकते हैं। इस मंदिर में सुबह-शाम लोगों की भीड़ लगी रहती है। हम बात कर रहे हैं दिल्ली के द्वारका सेक्टर 13 में स्थित श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश मंदिर की। ये इस्कॉन द्वारका दिल्ली के नाम से भी जाना जाता है। 23 जून 2013 को मंदिर का उद्घाटन किया गया और देवताओं की स्थापना की गई।
बता दें कि मंदिर के प्रमुख देवता श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश और श्री श्री जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा महारानी हैं। इस्कॉन द्वारका दिल्ली का मुख्य उद्देश्य वैदिक ज्ञान प्रदान करना और कृष्ण भावनामृत का प्रचार करना है। जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर द्वारका सेक्टर-13 में स्थित इस्कॉन मंदिर में धूमधाम से आयोजन किया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण और देवी रुक्मिणी की एक गलती के कारण रुकमणी को द्वारकाधीश मंदिर में स्थान नहीं दिया गया है। देवी रुक्मिणी और कृष्ण जी को एक दूसरे से करीब 12 साल तक अलग रहना पड़ा था। कथा के अनुसार, यदुवंशी दुर्वासा ऋषि को अपना कुलगुरु मानते थे। भगवान कृष्ण अपने विवाह के बाद रुक्मिणी के साथ दुर्वासा ऋषि के आश्रम पहुंचे।
उन्होंने दुर्वासा ऋषि को अपने महल आने के लिए आमंत्रित किया। दुर्वासा ऋषि ने उनका निमंत्रण स्वीकार करते हुए उनके सामने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि आप जिस रथ में आए हैं मैं उससे नहीं जाऊंगा मेरे लिए अलग से रथ का इंतजाम किया जाए। भगवान कृष्ण ने उनकी इस इच्छा को स्वीकार किया। रथ एक ही था इसलिए कृष्ण जी ने रथ से दो घोड़े निकाले और उनकी जगह वह रुक्मिणी के साथ रथ से जुड़ गए। रथ पर दुर्वासा ऋषि बैठ गए और भगवान कृष्ण और देवी रुक्मिणी रथ खीचने लगें।
रास्ते में देवी रुक्मिणी को प्यास लगी। तभी कृष्ण जी ने अपने अंगूठे को जमीन पर मारा और वहां से गंगाजल की धारा निकलने लगी। दोनों ने अपनी प्यास बुझा ली जब उन्होंने ऋषि दुर्वासा से पानी के लिए पूछा तो देवी दुर्वासा को क्रोध आ गया। गुस्से में आकर ऋषि दुर्वासा ने उन दोनों को 12 साल तक अलग रहने का श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर गंगा प्रकट हुई है वह स्थान भी बंजर हो जाएगा। इसके बाद देवी रुक्मणी ने भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें श्राप मुक्त कर दिया।
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