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महात्मा गांधी के प्रवास के चलते प्रसिद्ध है वाल्मीकि मंदिर, स्वच्छता अभियान यहीं शुरू हुआ


भगवान वाल्मीकि मंदिर दिल्ली के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। मंदिर का निर्माण एक विशाल क्षेत्र में किया गया है। पूरा परिसर आपको शांति की परिपूर्णता का एहसास कराता है। महात्मा गांधी के कई दिनों तक यहां रहने के कारण इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की जयंती पर यहीं से स्वच्छ भारत अभियान का आह्वान किया था। महात्मा गांधी ने  1 अप्रैल 1946 से 1947 के प्रारंभ तक अपने दिल्ली प्रवास के दौरान यहां 214 दिन बिताए थे।

मंदिर का ऐतिहासिक महत्व


पहली बार आने वाले आगंतुकों के लिए, यह मंदिर भारत की प्राचीन साहित्यिक और आध्यात्मिक परंपराओं से एक आकर्षक संबंध प्रदान करता है। यह क्षेत्र के सबसे पुराने वाल्मीकि मंदिरों में से एक है, और इसका इतिहास दिल्ली में वाल्मीकि समुदाय की सांस्कृतिक पहचान के साथ जुड़ा हुआ हैं।

मंदिर की वास्तुकला


दिल्ली के कुछ भव्य मंदिरों के विपरीत, भगवान वाल्मीकि मंदिर अपने सरल और शांत डिजाइन के लिए जाना जाता है। केंद्रीय मंदिर में महर्षि वाल्मीकि की एक मूर्ति है, जो जटिल नक्काशी और चित्रों से घिरी हुई है जो रामायण के प्रमुख क्षणों को दर्शाती हैं।

वाल्मीकि जी की पौराणिक कथा


महर्षि वाल्मीकि का जन्म नागा प्रजाति में हुआ था। महर्षि बनने के पहले वाल्मीकि कत्नाकर के नाम से जाने जाते थे। वे परिवार के पालन पोषण हेतु दस्युकर्म करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले। जब रत्नाकर ने उन्हें लूटना चाहा, तो उन्होंने रत्नाकर से पूछा कि यह कार्य किसलिए करते हो, रत्नाकर ने कहा कि परिवार को पालने के लिए। नारद जी ने प्रश्न पूछा कि क्या इस कार्य के फलस्वरूप जो पाप तुम्हें होगा उसका दंड भुगतने में तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारा साथ देंगे। रत्नाकर ने जवाब दिया पता नहीं, नारद जी ने कहा कि जाओ उनसे पूछ आओ।
तब रत्नाकर ने नारद जी को पेड़ से बांध दिया एवं घर जाकर पत्नी एवं अन्य परिवार वालों से पूछा कि क्या दस्युकर्म के फलस्वरूप होने वाले पाप के दंड में मेरा साथ दोगे तो सबने मना कर दिया। तब रत्नाकर नारद जी के पास लौटे एवं उन्हें ये बात बताई। इस पर नारद जी ने कहा कि हे रत्नाकर यदि तुम्हारे घरवाले इसके पाप में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिए ये पाप करते हो।
यह सुनकर रत्नाकर को दुष्कर्म से विरक्ति हो गई एव उन्होंने नारद जी से उद्धार का उपाय पूछा। तो नारदमुनि ने उन्हें राम-राम जपने का निर्देश दिया। रत्नाकर वन में बैठकर राम-राम का जाप करने लगे लेकिन अज्ञानतावश राम-राम की जगह मरा-मरा जपने लगे। कई सालों तक कठोर तप के बाद उनके पूरे शरीर पर चीटियों ने बांबी बना ली जिस कारण उनका नाम वाल्मीकि पड़ा।
कठोर तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें ज्ञान प्रदान किया एवं रामायण की रचना करने की आज्ञा दी। ब्रह्मा जी की कृपा से उन्हें समय से पर्व ही रामायण की सभी घटनाओं का ज्ञान हो गया तथा उन्होंने रामायण की रचना की। कालान्तर में वे महान ऋषि बने।

कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा दिल्ली का इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट हैं। यहां से आप टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते है।
रेल मार्ग - यहां पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन दिल्ली स्टेशन है। यहां से आप टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते है।
सड़क मार्ग - यहां पहुंचने के लिए सभी मार्ग उचित है। सड़क व्यवस्था अच्छी है। आप किसी भी मार्ग से यहां पहुंच सकते हैं।
मंदिर का समय - ये मंदिर सुबह 4 बजे से लेकर रात 9 बजे तक खुला रहता है।

डिसक्लेमर

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