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गंधेश्वर महादेव के शिवलिंग से आती तुलसी के पत्तों की खुशबूू, बाणासुर ने काशी से लाकर की थी स्थापना 


भगवान शिव के बहुत सारे मंदिर ऐसे भी है जिनकी खोज पुरातत्व विभाग ने की है। छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में सिरपुर में एक ऐसा ही मंदिर है जिसे गंधेश्वर महादेव के नाम से जाता है। ये भगवान शिव का एक ऐसा शिवलिंग है जो सुगंधों की बौछार करता है। इस शिवलिंग से तुलसी के पत्तों की खुशबू आती है।


बाणासुर ने की थी शिवलिंग की स्थापना 


छठी शताब्दी में सिरपुर के वैभव के पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं। ऐसी मान्यता है कि जब सिरपुर में भूकंप का प्रकोप आया और ऐतिहासिक नगरी इसकी चपेट में आई तब मंदिर का जलहरी उत्तर की ओर से घूमकर पूर्व की ओर हो गया। यहां शिवलिंग की जलहरी उत्तर की ओर न होकर पूर्व की ओर है। इसलिए शिवलिंग के प्राचीनकालीन होने की मान्यता है। 


यह भी मान्यता है कि बाणासुर शिवभक्त थे और बहुत से शिवलिंग स्थापित किये थे, तब उन्हें ये आभास हुआ की शिवलिंग से किसी प्रकार की गंध आ रही है। तभी से शिवलिंग का नाम गंधेश्वर के नाम पर हुआ। जनश्रुति अनुसार, जलहरी के पूर्व दिशा की ओर होने के कारण इसे तांत्रिक उपासना से जोड़ा जाता है। 1984 में यहां कावंड यात्रा शुरु हुई और तब से सावन के महीने में यहां कावड़ियों का जत्था उमड़ने लगा। इस मंदिर के पास महानदी है। महानदी से सहस्त्र जलधारा अभिषेक का यहां आयोजन होता रहता है। 


महादेव ने साक्षात प्रकट होकर दिए थे दर्शन 


गंधेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी जो कथा सुनाते है उनके अनुसार, सिरपुर में 8वीं शताब्दी में बाणासुर का शासन था। बाणासुर शिव जी के अन्नय भक्त थे। अपने कर्तव्यों के पालन के बीच वे जैसे ही समय पाते, काशी जरुर जाते और वापसी में अपने साथ एक शिवलिंग जरुर लाते। हर यात्रा के बाद साथ लाए शिवलिंग को वे सिरपुर में स्थापित करते। 


जब शिव जी ने भक्त बाणासुर का ये प्रेम देखा तो एक दिन प्रभु स्वयं उनके समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने बाणासुर से कहा कि तुम हमेशा पूजा करने काशी आते हो, अब में सिरपुर में ही प्रकट हो रहा हूं। इस पर बाणासुर ने कहा कि, हे प्रभु, मैं सिरपुर में काफी संख्या में शिवलिंग स्थापित कर चुका हू। अब ऐसे में मैं अल्पज्ञानी कैसे पहचानूंगा कि आप किस शिवलिंग के रुप में प्रकट हुए हैं। 


इसपर भगवान ने कहा कि अवश्य ही विभिन्न शिवलिंग सिरपुर में हैं लेकिन जिस शिवलिंग से गंध का अहसास हो, उसे ही स्थापित कर पूजा करो। जब बाणासुर ने प्रभु के कहे मुताबिक जांच की तो पाया कि एक शिवलिंग के स्पर्श से हाथों में अद्भुत गंध आ रही है। फिर बाणासुर ने पूरे सम्मान के साथ ये दुर्लभ शिवलिंग महानदी के तट के करीब एक मंदिर में स्थापित करवाया, जिसे गंधेश्वर महादेव के नाम से जाना गया।


सावन में है जलाभिषेक का खास महत्व


गंधेश्वर महादेव में भक्तों की आस्था के दर्शन तो सिरपुर में प्रवेश के साथ ही हो जाते है। सावन मास में यहां का नजारा अद्भुत होता है। दरअसल बारिश के आगमन पर जब प्रकृति ऊपर से जल बरसाती है तो कहते हैं कि उस दौरान शिव जी को जल अर्पित कर आप प्रकृति से एकाकार हो जाते है। इसलिए सावन में शिवलिंग पर जल अर्पित करने का इतना महत्व है। ऐसी मान्यता है कि गंधेश्वर महादेव मंदिर में जल अर्पित कर सच्चे दिल से जो भी कामना की जाए वो अवश्य ही पूरी होती है। 


मंदिर के दो स्तंभों पर अभिलेख उत्कीर्ण हैं। कहा जाता है कि चिमनाजी भौंसले ने इस मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था। और इसकी व्यवस्था के लिए जागीर नियत कर दी थी। गंधेश्वर मंदिर वास्तव में सिरपुर के अवशेषों की सामग्री से ही बना प्रतीत होता है। मंदिर की नक्काशी और संरचनाओं को देखने से मन खुश हो जाता है। 


गंधेश्वर महादेव मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - मंदिर के लिए निकटतम हवाई अड्डा रायपुर का स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा है। यहां से आप टैक्सी या बस द्वारा महासमुंद पहुंच सकते हैं। फिर वहां से स्थानीय परिवहन द्वारा मंदिर जा सकते हैं। रायपुर से महासमुंद की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है।


रेल मार्ग - मंदिर के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन महासमुंद है। यहां से आप टैक्सी या ऑटो लेकर मंदिर जा सकते हैं। स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 10 से 12 किलोमीटर है।


सड़क मार्ग - महासमुंद शहर से गंधेश्वर महादेव मंदिर लगभग 10 से 12 किलोमीटर है। आप अपनी निजी कार या बस द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं। 


डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।