नवीनतम लेख

श्री चित्रगुप्त चालीसा (Shri Chitragupta Chalisa)

image
Your browser does not support the audio element.

दोहा


कुल गुरू को नमन कर, स्मरण करूँ गणेश ।

फिर चरण रज सिर धरहँ, बह्मा, विष्णु, महेश ।।


वंश वृद्धि के दाता, श्री चित्रगुप्त महाराज ।

दो आशीष दयालु मोहि, सिद्ध करो सब काज ।।


चैपाई


जय चित्र विधान विशारद ।

जय कायस्थ वंशधर पारद ।।


बह्मा पुत्र पुलकित मन काया ।

जग मे सकल तुम्हारी माया ।।


लक्ष्मी के संग-संग उपजे ।

समुद्र मंथन में महा रजे ।।


श्याम बरण पुष्ट दीर्घ भुजा ।

कमल नयन और चक्रवृत मुखा ।।


शंख तुल्य सुन्दर ग्रीवा ।

पुरूष रूप विचित्रांग देवा ।।


सदा ध्यान मग्न स्थिर लोचन ।

करत कर्म के सतत निरीक्षण ।।


हाथ में कलम दवात धारी ।

हे पुरूषोत्तम जगत बिहारी ।।


अति बुद्धिमंत परम तेजस्वी ।

विशाल हृदय जग के अनुभवी ।।


अज अंगज यमपुर के वासी ।

सत धर्म विचारक विश्वासी ।।


चित्रांश चतुर बुद्धि के धनी ।

कर्म लेखापाल शिरोमणी ।।


तुम्हारे बिना किसी की न गति ।

नन्दिनी, शोभावती के पति ।।


संसार के सर्व सुख दाता ।

तुम पर प्रसन्न हुए विधाता ।।


चित्रगुप्त नाम बह्म ने दिया ।

कायस्थ कुल को विख्यात किया ।।


पिता ने निश्चित निवास किया ।

पर उपकारक उपदेश दिया ।।


तुम धर्माधर्म विचार करो ।

धर्मराज का जय भार हरो ।।


सत धर्म को महान बनाओ ।

जग में कुल संतान बढाओ ।।


फिर प्रगट भये बारह भाई ।

जिनकी महिमा कही न जाई ।।


धर्मराज के परम पियारे ।

काटो अब भव-बंधन सारे ।।


तुम्हारी कृपा के सहारे ।

सौदास स्वर्ग लोग सिहारे ।।


भीष्म पिता को दीर्घायु किया ।

मृत्यु वरण इच्छित वर दिया ।।


परम पिता के आज्ञा धारक ।

महिष मर्दिनी के आराधक ।।


वैष्णव धर्म के पालन कर्ता ।

सकल चराचर के दुःख हर्ता ।।


बुद्धिहीन भी बनते लायक ।

शब्द सिन्धु लेखाक्षर दायक ।।


लेखकीयजी विद्या के स्वामी ।

अब अज्ञान हरो अन्नंतयामी ।।


तुमको नित मन से जो ध्यावे ।

जग के सकल पदारथ पावे ।।


भानु, विश्वभानु, वीर्यवान ।

चारू, सुचारू, विभानु, मतिमान ।।


चित्र, चारूस्थ, चित्रधार, हिमवान ।

अतिन्द्रिय तुमको भजत सुजान ।

पापी पाप कर्म से छूटे ।

भोग-अभोग आनन्द लूटे ।।


विनती मेरी सुनो महाराज ।

कुमति निवारो पितामह आज ।।


यम द्वितीया को होय पूजा ।

तुमरे सम महामति न दूजा ।।


जो नर तुमरी शरण आवे ।

धूप, दीप नैवेद्य चढ़ावे ।।


शंख-भेरी मृदंग बजावे ।

पाप विनाशे, पुण्य कमावे ।।


जो जल पूरित नव कलश भरे ।

शक्कर ब्राह्मण को दान करे ।।


काम उसी के हो पुरे ।

काल कभी ना उसको घूरे ।।


महाबाहो वीरवर त्राता ।

तुमको भजकर मन हरसाता ।।


नव कल्पना के प्ररेणा कुंज ।

पुष्पित सदभावों के निकुंज ।।


कवि लेखक के तुम निर्माता ।

तुमरो सुयश ‘नवनीत’ गाता ।।


जो सुनहि, पढ़हिं चित्रगुप्त कथा ।

उसे न व्यापे, व्याधि व्यथा ।।


अल्पायु भी दीर्घायु होवे ।

जन्म भर के सब पाप धोवे ।।


संत के समान मुक्ति पावे ।

अंत समय विष्णु लोक जावे ।।


दोहा 


चित्त में जब चित्रगुप्त बसे, हृदय बसे श्रीराम ।

भव के आनन्द भोग कर मनुज पावे विश्राम ।।


श्री सूर्य देव चालीसा (Shri Surya Dev Chalisa)

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥

वास्तु दोष निवारण की पूजा विधि

वास्तु शास्त्र प्रकृति और मानव जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाला प्राचीन विज्ञान है। जब किसी भवन या स्थान में वास्तु के सिद्धांतों का पालन नहीं होता, तो वहां नकारात्मक ऊर्जा या समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

देखो राजा बने महाराज (Dekho Raja Bane Maharaj)

देखो राजा बने महाराज,
आज राम राजा बने,

शिवोहम शिवोहम शिवोहम.. (Shivoham Shivoham Shivoham)

आत्मा ने परमात्मा को लिया
देख ध्यान की दृष्टि से ।