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भगवत गीता चालीसा ( Bhagwat Geeta Chalisa )

प्रथमहिं गुरुको शीश नवाऊँ | हरिचरणों में ध्यान लगाऊँ ||१||

गीत सुनाऊँ अद्भुत यार | धारण से हो बेड़ा पार ||२||

अर्जुन कहै सुनो भगवाना | अपने रूप बताये नाना ||३||

उनका मैं कछु भेद न जाना | किरपा कर फिर कहो सुजाना ||४||

जो कोई तुमको नित ध्यावे | भक्तिभाव से चित्त लगावे ||५||

रात दिवस तुमरे गुण गावे | तुमसे दूजा मन नहीं भावे ||६||

तुमरा नाम जपे दिन रात | और करे नहीं दूजी बात ||७||

दूजा निराकार को ध्यावे | अक्षर अलख अनादि बतावे ||८||

दोनों ध्यान लगाने वाला | उनमें कुण उत्तम नन्दलाला ||९||

अर्जुन से बोले भगवान् | सुन प्यारे कछु देकर ध्यान ||१०||

मेरा नाम जपै जपवावे | नेत्रों में प्रेमाश्रु छावे ||११||

मुझ बिनु और कछु नहीं चावे | रात दिवस मेरा गुण गावे ||१२||

सुनकर मेरा नामोच्चार | उठै रोम तन बारम्बार ||१३||

जिनका क्षण टूटै नहिं तार | उनकी श्रद्घा अटल अपार ||१४||

मुझ में जुड़कर ध्यान लगावे | ध्यान समय विह्वल हो जावे ||१५||

कंठ रुके बोला नहिं जावे | मन बुधि मेरे माँही समावे ||१६||

लज्जा भय रु बिसारे मान | अपना रहे ना तन का ज्ञान ||१७||

ऐसे जो मन ध्यान लगावे | सो योगिन में श्रेष्ठ कहावे ||१८||

जो कोई ध्यावे निर्गुण रूप | पूर्ण ब्रह्म अरु अचल अनूप ||१९||

निराकार सब वेद बतावे | मन बुद्धी जहँ थाह न पावे ||२०||

जिसका कबहुँ न होवे नाश | ब्यापक सबमें ज्यों आकाश ||२१||

अटल अनादि आनन्दघन | जाने बिरला जोगीजन ||२२||

ऐसा करे निरन्तर ध्यान | सबको समझे एक समान ||२३||

मन इन्द्रिय अपने वश राखे | विषयन के सुख कबहुँ न चाखे ||२४||

सब जीवों के हित में रत | ऐसा उनका सच्चा मत ||२५||

वह भी मेरे ही को पाते | निश्चय परमा गति को जाते ||२६||

फल दोनों का एक समान | किन्तु कठिन है निर्गुण ध्यान ||२७||

जबतक है मन में अभिमान | तबतक होना मुश्किल ज्ञान ||२८||

जिनका है निर्गुण में प्रेम | उनका दुर्घट साधन नेम ||२९||

मन टिकने को नहीं अधार | इससे साधन कठिन अपार ||३०||

सगुन ब्रह्म का सुगम उपाय | सो मैं तुझको दिया बताय ||३१||

यज्ञ दानादि कर्म अपारा | मेरे अर्पण कर कर सारा ||३२||

अटल लगावे मेरा ध्यान | समझे मुझको प्राण समान ||३३||

सब दुनिया से तोड़े प्रीत | मुझको समझे अपना मीत ||३४||

प्रेम मग्न हो अति अपार | समझे यह संसार असार ||३५||

जिसका मन नित मुझमें यार | उनसे करता मैं अति प्यार ||३६||

केवट बनकर नाव चलाऊँ | भव सागर के पार लगाऊँ ||३७||

यह है सबसे उत्तम ज्ञान | इससे तू कर मेरा ध्यान ||३८||

फिर होवेगा मोहिं सामान | यह कहना मम सच्चा जान ||३९||

जो चाले इसके अनुसार | वह भी हो भवसागर पार ||४०||

संसार का सारा सुख केवल, श्री राम तुम्हारे चरणों में(Sansar Ka Sara Sukh Keval Shree Ram Tumhare Charno Mein)

संसार का सारा सुख केवल,
श्री राम तुम्हारे चरणों में,

जबसे बरसाने में आई, मैं बड़ी मस्ती में हूँ(Jab Se Barsane Me Aayi Main Badi Masti Me Hun)

जबसे बरसाने में आई,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ,

गणेश जयंती पूजा विधि

सनातन हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान गणेश जी का जन्म माघ महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था। इसे श्रीगणेश के अवतरण-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

देना हो तो दीजिए जनम जनम का साथ(Dena Ho To Dijiye Janam Janam Ka Sath)

देना हो तो दीजिए,
जनम जनम का साथ ।

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