नवीनतम लेख
सनातन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को पूर्णावतार माना गया है। उनका जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था।
प्रथम वंदनीय गणेशजी को समर्पित मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना का विशेष महत्व है।
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग। पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।
श्री गणपति पद नाय सिर , धरि हिय शारदा ध्यान । सन्तोषी मां की करूँ , कीरति सकल बखान ।
बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम, राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥
श्री गुरु गणनायक सिमर, शारदा का आधार। कहूँ सुयश श्रीनाथ का, निज मति के अनुसार।
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन को, करुं प्रणाम | उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ||
जय जय जल देवता,जय ज्योति स्वरूप । अमर उडेरो लाल जय,झुलेलाल अनूप ॥
शीतल हैं शीतल वचन, चन्दन से अधिकाय । कल्प वृक्ष सम प्रभु चरण, हैं सबको सुखकाय ।।
कुल गुरू को नमन कर, स्मरण करूँ गणेश । फिर चरण रज सिर धरहँ, बह्मा, विष्णु, महेश ।।