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क्या है सीमंतोन्नयन संसार

Jan 10 2025

क्या है सीमंतोन्नयन संस्कार? जन्म के कितने महीनों बाद करना होगा सही 


सनातन हिंदू धर्म के अनुसार  जिस प्रकार एक सैनिक को युद्ध में जाने से पूर्व शस्त्र के साथ-साथ कवच की भी आवश्यकता पड़ती है। ठीक वैसे ही मनुष्य के जीवन के विभिन्न चरणों के लिए किए गए संस्कार ही उनके कवच माने जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, एक मनुष्य को जन्म से मृत्यु तक कुल मिलाकर सोलह संस्कार  करना आवश्यक होता है। इन्हीं 16 संस्कारों में से एक है सीमंतोन्नयन संस्कार। यह संस्कार क्रम अनुसार तीसरे स्थान पर आता है। तो आइए, इस आर्टिकल में   सीमंतोन्नयन संस्कार, इसकी मान्यता और महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं।


जानिए क्या है सीमंतोन्नयन संस्कार? 


सीमंतोन्नयन संस्कार हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में तीसरे स्थान पर आता है। इसे गर्भास्था के छठवें या आठवें महीने में पूर्ण किया जाता है। सीमंतोन्नयन संस्कार गर्भस्थ शिशु और उसकी माता की रक्षा करने के उद्देश्य से किया जाता है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण ये है कि छठवें से आठवें महीने में गर्भपात या प्री-मेच्योर डिलीवरी होने की सर्वाधिक संभावनाएं होती है। इसलिए, निर्धारित समय से पहले गर्भपात को रोकने के लिए ही ये संस्कार किया जाता है।


सीमंतोन्नयन संस्कार की वैदिक मान्यता 


ऋग्वेद में सीमंतोन्नयन संस्कार का एक श्लोक में जिक्र किया गया है, जो इस प्रकार है। “येनादिते सीमानं नयति प्रजापतिर्महते सौभगाय!

तेनाहमस्यै सीमानं नयामि प्रजामस्यै जरदष्टि कृणोमी!!”  इसका अर्थ है “जिस तरह से ब्रह्मा ने देवमाता अदिति का सीमंतोन्नयन किया था, ठीक उसी तरह से गर्भिणी का सीमंतोन्नयन कर इसकी संतान को मैं दीर्घजीवी करता हूं”।


जानिए सीमंतोन्नयन संस्कार की विधि 


सीमंतोन्नयन संस्कार को पुरोहित अथवा पंडित के सानिध्य में किया जाना चाहिए। इस दौरान पति ॐ भूर्विनयामि मंत्र का जाप करते हुए गूलर की टहनी से पत्नी की मांग निकालता है। इसके उपरांत ऋग्वेद के मंत्र को बोला जाता है। फिर गर्भवती स्त्री घर की बुजुर्ग महिलाओं का आशीर्वाद लेती हैं। कहते हैं कि इस संस्कार के अंत में महिला को घी मिलाकर खिचड़ी खानी चाहिए। इससे बच्चे के मानसिक विकास में मदद मिलती है।


क्यों जरूरी है सीमंतोन्नयन संस्कार?  


4 माह के उपरांत गर्भ में पल रहे बालगोपाल का तेजी से विकास होने लगता है। इसके बाद माता के मन में नई-नई इच्छाएं पैदा होती हैं। माता के स्वभाव में भी बदलाव आ जाता है। ऐसे में शिशु के मानसिक विकास के लिए उन इच्छाओं को पूरा करना और माता को मानसिक बल प्रदान करने के लिए सीमंतोन्नयन संस्कार किया जाता है। बता दें कि छठवें या आठवें महीने में इस संस्कार को पूर्ण करना चाहिए। क्योंकि, इस समय शिशु सुनने में सक्षम होता है।


क्या हैं सीमंतोन्नयन संस्कार के लाभ?  


सीमंतोन्नयन संस्कारों आधुनिक तौर पर आज के बेबी शॉवर का ही रूप है। इसमें मंत्रों से शिशु को चैतन्य किया जाता है। इसके जरिए गर्भ में पल रहे बालक को नवग्रह मंत्रों से भी संस्कारित किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस संस्कार से शिशु को ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त होती है। साथ ही इस संस्कार से शिशु की ग्रहण शक्ति का भी विकास होता है।


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