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एक समय हुआ करता था जब सनातन धर्म का पालन करने वाले लोग वैदिक ग्रंथ जैसे शास्त्र, पुराण, उपनिषद जैसे ग्रंथ ना सिर्फ पढ़ते थे बल्कि उनका अनुग्रहण भी किया करते थे। इसकी वजह से पहले के लोगों को कई सारे ऐसे विशेष व्रत के बारे में जानकारी थी जिन्हें करने से लोग पाप मुक्त होते हैं और पुण्य फल की प्राप्ति होती है। अगर आज भी हम वैदिक ग्रंथों का अध्ययन शुरु कर दें तो हमें कई ऐसे गूढ़ रहस्यों का पता चलेगा जो अपने आप में एकदम अद्भुत हैं। पौराणिक ग्रंथों में जिन अद्भुत व्रत और पूजन का उल्लेख मिलता है उनमें से एक व्रत ऐसा भी है जिसे 20 करोड़ एकादशी व्रतों से भी श्रेष्ठ माना गया है। यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ा है और इसे करने से जीवन में पुण्य फल की प्राप्ति होती है। भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे हैं कथा जन्माष्टमी के अद्भुत व्रत की, साथ ही जानेंगे कि क्या है इस व्रत का महत्व और इसकी पूजन विधि…..
दरअसल कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत अपने आप में एक बेहद दुर्लभ व्रत है, कहा जाता है कि यदि इस व्रत का पालन विधि विधान के साथ किया जाए तो व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूरी होती हैं। मान्यता है कि जन्माष्टमी के व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे सुखों की प्राप्ति होती है। भविष्योत्तर पुराण में युधिष्ठिर को बताते हुए स्वयं श्री कृष्ण कहते हैं कि जन्माष्टमी का व्रत करने पर व्यक्ति को हजार एकादशी के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है। वहीं ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस व्रत के बारे में लिखा है कि जो प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है, वह सौ जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है। इस साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जाएगी। अष्टमी तिथि का प्रारंभ 26 अगस्त की सुबह 3 बजकर 39 मिनट से होगा और इसकी समाप्ति 27 अगस्त को रात 2 बजकर 19 मिनट पर होगी।
जो भक्त जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए। इसके बाद जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इस व्रत का संकल्प प्रातः काल के समय लिया जाता है और संकल्प के साथ ही अहोरात्र का व्रत प्रारम्भ हो जाता है. जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण की पूजा निशीथ काल यानी रात्रि के समय में की जाती है। इसके बाद अगले दिन सूर्योदय के पश्चात जब अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त हो जाए तो इस व्रत का पारायण करना चाहिए। वैसे तो ये व्रत बहुत लंबी अवधि का होता है लेकिन हिन्दू ग्रन्थ धर्मसिन्धु के अनुसार जो व्यक्ति लगातार दो दिनों तक व्रत करने में समर्थ नहीं है वो जन्माष्टमी के अगले दिन ही सूर्योदय के पश्चात इस व्रत को खोल सकते हैं।
जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले भक्तों को श्री कृष्ण की पूजा के समय इस कथा को पढ़ना या फिर सुनना चाहिए:
भागवत पुराण के अनुसार, द्वापर युग में मथुरा नगरी पर कंस नाम का एक अत्याचारी राजा शासन करता था। उसने अपने पिता राजा उग्रसेन को गद्दी से हटाकर जेल में बंद कर दिया और स्वयं राजा बनकर मथुरा पर कहर ढाने लगा। कंस अपनी बहन देवकी से बहुत स्नेह करता था। उसने देवकी का विवाह अपने मित्र वासुदेव के साथ कराया। जब कंस देवकी और वासुदेव को उनके राज्य लेकर जा रहा था तभी एक आकाशवाणी हुई जिसमें कहा गया कि देवकी की आंठवी संतान ही तेरा वध करेगी कंस।
आकाशवाणी सुनकर कंस क्रोधित हो गया और वासुदेव को मारने के लिए आगे बढ़ा लेकिन तब देवकी ने कंस से कहा कि वह उसके पति को न मारें उसकी जगह देवकी और वासुदेव की जो भी संतान जन्म लेगी, उनको वो कंस को सौंप देगी। कंस ने बहन की बात मान ली और दोनों को कारागार में बंद कर दिया। कारागार में कंस ने एक-एक कर देवकी के 6 बच्चों को मार दिया। सातवीं संतान के रूप में जन्में शेषनाग के अवतार बलराम को योगमाया ने संकर्षित कर माता रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दिया, जिस वजह से बलराम का एक नाम संकर्षण भी हुआ।
इसके बाद माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में स्वयं भगवान विष्णु भुवन मोहन कन्हैया यानी श्री कृष्ण के अवतार में पृथ्वी पर पधारे। ठीक उसी समय माता यशोदा ने भी एक पुत्री को जन्म दिया। जैसे ही कृष्ण का जन्म हुआ कारागार में भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने कृष्ण को वासुदेव के मित्र नंद जी के यहां छोड़कर आने और वहां से उनकी कन्या को कारागार में लाने का आदेश दिया।
वासुदेव ने देरी न करते हुए भगवान कृष्ण को उठाया और गोकुल की तरफ कदम बढ़ा दिए। जैसे ही वासुदेव के कदम आगे की और बढ़े भगवान विष्णु की माया से सभी पहरेदार सो गए और कारागार के सभी दरवाजे अपने आप खुल गए। यमुना नदी उस समय वर्षा के कारण गहरे उफान पर थी. नदी के तट पर पहुंचकर वासुदेव ने कृष्ण को एक सूपे में रखा और अपने सिर पर रखकर नदी पार करने लगे. धीरे धीरे नदी का पानी बढ़ता गया जिसके बाद श्री कृष्ण ने अपने पैर उस सूपे से बाहर कर दिए और उनके पांव छूकर यमुना का जलस्तर कम हो गया और यमुना जी ने भी शांत होकर वासुदेव जी को जाने का मार्ग दे दिया।
वासुदेव बालक के रूप में भगवान कृष्ण को लेकर नंद के यहां सकुशल पहुंच गए और वहां बालक कृष्ण को यशोदा माता के पास छोड़कर, उनकी नवजात कन्या को अपने साथ लेकर वापस आ गए। जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म की सूचना मिली तब वह तत्काल कारागार में कन्या की हत्या करने के लिए आया और उस कन्या को देवकी माता से छीनकर पृथ्वी पर पटकने का प्रयास करने लगा, लेकिन वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आसमान की ओर जाने लगी। तब उस कन्या ने कंस से कहा- ‘हे मूर्ख कंस! तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है।
इस तरह श्री कृष्ण का जन्म हुआ, जिसके बाद उन्होंने कंस का वध कर धरती को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। कहा जाता है कि जो भी इस कथा को सुनता या पढ़ता है उसे पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
जन्माष्टमी की पूजा करने के लिए आप सबसे पहले:
भगवान श्री कृष्ण का जन्म अंधकार में प्रकाश का प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है उसकी आयु, कीर्ति, यश, लाभ इत्यादि में वृद्धि होती है। व्यक्ति ऐश्वर्य को धारण करता है और मुक्ति को प्राप्त करता है। जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज कहा गया है। भविष्य पुराण के अनुसार, जो एक बार भी इस व्रत को करता है वह संसार के सभी सुखों को भोगकर विष्णुलोक में निवास करता है। ये व्रत सेहत के नजरिए से भी महत्व रखता है, क्योंकि इस पर्व के दौरान बारिश का मौसम होता है। इस मौसम में खाना देरी से और कम पचता है। इस कारण बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है। ये ही वजह है कि व्रत-उपवास करने से पाचन मजबूत होता है और सेहत में भी सुधार होता है।
भक्तवत्सल ने श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान श्री कृष्ण की मनमोहक लीलाओं पर एक सीरीज पब्लिश की है जिसे पढ़कर आप भुवन मोहन कन्हैया की लीलाओं का आनंद ले सकते हैं।
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