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संस्कार जन्म से लेकर मृत्यु तक मानव जीवन के हर चरण में किए जाते हैं। इन संस्कारों के धार्मिक महत्व के साथ इनका वैज्ञानिक आधार भी है। यही कारण है कि ये संस्कार हजारों वर्षों से हिंदू संस्कृति और परंपरा का हिस्सा रहे हैं। इन्हीं 16 संस्कारों में एक है केशांत संस्कार। इसे श्मश्रु संस्कार या गोदान संस्कार भी कहा जाता है। यह संस्कार एक शिष्य के गुरुकुल जीवन के समाप्ति का प्रतीक होता है और उसे गृहस्थाश्रम में प्रवेश कराने से पहले किया जाता है। तो आइए, इस आर्टिकल में केशांत संस्कार के बारे में विस्तार से जानते हैं।
केशांत संस्कार का शाब्दिक अर्थ है "बालों और दाढ़ी का मुंडन।" यह संस्कार उस समय किया जाता है जब शिष्य अपने गुरु के सानिध्य में ब्रह्मचर्य और शिक्षा पूरी कर चुका होता है। गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करते समय शिष्य ब्रह्मचर्य का पालन करता है और अपने बाल और दाढ़ी को बढ़ने देता है।
विद्याध्ययन के अंत में, जब शिष्य युवावस्था में प्रवेश करता है, तो उसके बाल और दाढ़ी काटने की परंपरा निभाई जाती है। यह संस्कार इस बात का प्रतीक है कि अब शिष्य गुरुकुल जीवन से आगे बढ़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर सकता है।
केशांत संस्कार को श्मश्रु संस्कार भी कहा जाता है क्योंकि इसमें शिष्य की दाढ़ी का मुंडन होता है। इसे गोदान संस्कार भी कहते हैं, क्योंकि इस संस्कार के अंत में गोदान करने की परंपरा है। वहीं, कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार, यह संस्कार उपनयन संस्कार का ही विस्तार है। उपनयन संस्कार में शिष्य को वेदों का अध्ययन करने के लिए गुरुकुल भेजा जाता है। जबकि, केशांत संस्कार में शिक्षा पूरी होने पर उसे गृहस्थ जीवन के लिए तैयार किया जाता है।
आज के समय में गुरुकुल व्यवस्था समाप्त हो चुकी है। फिर भी केशांत संस्कार का महत्व है। यह संस्कार यह संदेश देता है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं है। बल्कि, समाज और मानवता की सेवा भी है।
केशांत संस्कार हिंदू धर्म के उन संस्कारों में से है जो व्यक्तिगत, सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन के संतुलन को दर्शाते हैं। यह संस्कार व्यक्ति के जीवन में अनुशासन, ज्ञान और जिम्मेदारी की भावना पैदा करता है।
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