क्या होता है ग्रह गोचर, कैसे करता है ये आपके जीवन को प्रभावित
ज्योतिष विज्ञान में “ग्रह गोचर” शब्द अक्सर सुनने को मिलता है। यहां गोचर का सीधा मतलब ग्रह की चाल से है। ग्रह का राशि परिवर्तन यानी एक राशि से दूसरी राशि में जाना ही गोचर कहलाता है। ज्योतिष में सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु कुल नौ ग्रह हैं। ये अपनी गति के अनुसार समय-समय पर राशियां बदलते हैं। किसी के जीवन में ग्रहों के गोचर का बहुत प्रभाव पड़ता है। सूर्य से लेकर केतु तक सभी ग्रहों के राशि परिवर्तन का अवधि अलग-अलग होती है। तो आइए, जानते हैं प्रत्येक ग्रह के गोचर का महत्व।
ग्रहों के गोचर की अवधि
हर ग्रह का गोचर उसकी गति पर निर्भर करता है। नीचे सभी ग्रहों की गोचर अवधि दी गई है।
- सूर्य- एक माह
- चंद्र- लगभग सवा दिन
- मंगल- करीब डेढ़ माह
- बुध- लगभग 14 दिन
- बृहस्पति- एक साल
- शुक्र- लगभग 23 दिन
- शनि- ढ़ाई साल
- राहु-केतु- एक से डेढ़ वर्ष
सूर्य का गोचर
- राशि स्वामी:- सिंह
- कारक: आत्मा का कारक
- शुभ फल: सूर्य का गोचर यदि कुंडली के तीसरे, छठे, दसवें और ग्यारहवें भाव में हो, तो यह व्यक्ति को आत्मविश्वास, ऊर्जा और सफलता प्रदान करता है।
- अशुभ फल: बाकी भावों में सूर्य का गोचर स्वास्थ्य समस्याएं, अहंकार और संबंधों में तनाव ला सकता है।
मंगल का गोचर
- राशि स्वामी:- मेष और वृश्चिक
- कारक: ऊर्जा, साहस और बल
- शुभ फल:- मंगल का गोचर कुंडली के तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में साहस, धन और शत्रुओं पर विजय दिलाता है।
- अशुभ फल: बाकी भावों में यह व्यक्ति को गुस्सा, दुर्घटनाओं और विवादों की ओर ले जा सकता है।
बुध का गोचर
- राशि स्वामी:- मिथुन और कन्या
- कारक:- बुद्धि, संवाद और तर्कशक्ति
- शुभ फल:- बुध का गोचर कुंडली के दूसरे, चौथे, छठे, आठवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में हो, तो यह संवाद क्षमता, शिक्षा और आर्थिक लाभ देता है।
- अशुभ फल:- शेष भावों में बुध का गोचर निर्णय लेने की क्षमता और तर्कशक्ति पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
गुरु (बृहस्पति) का गोचर
- राशि स्वामी:- धनु और मीन
- कारक:- ज्ञान, संतान और परिवार
- शुभ फल:- गुरु का गोचर कुंडली के दूसरे, पाँचवें, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में जीवन में ज्ञान, संतान सुख और समृद्धि लाता है।
- अशुभ फल:- बाकी भावों में गुरु का गोचर गलत निर्णय, आलस्य और आर्थिक नुकसान का कारण बन सकता है।
शुक्र का गोचर
- राशि स्वामी:- वृषभ और तुला
- कारक:- प्रेम, सुंदरता और कला
- शुभ फल:- शुक्र का गोचर पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवें, आठवें, नौवें, ग्यारहवें और बारहवें भाव में जीवन में रोमांस, रचनात्मकता और विलासिता लाता है।
- अशुभ फल:- शेष भावों में शुक्र का गोचर रिश्तों में तनाव और आर्थिक नुकसान का कारण बन सकता है।
शनि का गोचर
- राशि स्वामी:- मकर और कुंभ
- कारक:- कर्म
- शुभ फल:- शनि का गोचर कुंडली के तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में व्यक्ति को मेहनत के सकारात्मक परिणाम, सफलता और स्थिरता प्रदान करता है।
- अशुभ फल:- बाकी भावों में शनि का गोचर विलंब, बाधाएं और मानसिक तनाव बढ़ा सकता है।
राहु का गोचर
- राशि स्वामी:- इसके राशि स्वामी कोई नहीं हैं। क्योंकि यह एक छाया ग्रह है।
- कारक:- चतुराई, तकनीक और राजनीति
- शुभ फल:- राहु का गोचर कुंडली के तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में व्यक्ति को तकनीकी ज्ञान, साहस और अप्रत्याशित सफलता देता है।
- अशुभ फल:- शेष भावों में राहु का गोचर भ्रम, धोखा और असफलता का कारण बनता है।
केतु का गोचर
- राशि स्वामी:- कोई नहीं (छाया ग्रह)
- कारक: वैराग्य, आध्यात्म और मोक्ष
- शुभ फल:- केतु का गोचर कुंडली के पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवें, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान और मानसिक शांति देता है।
- अशुभ फल:- बाकी भावों में यह अवसाद, असंतोष और अस्थिरता ला सकता है।