हिंदू धर्म की सर्वोच्च विवाह परंपरा है ब्रह्म विवाह, जानें महत्व और नियम
हिंदू धर्म के शास्त्रों में वर्णित आठ प्रकार के विवाहों में ब्रह्म विवाह को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इसे सबसे आदर्श और पवित्र माना गया है। क्योंकि, इसमें वर-वधू दोनों के ब्रह्मचर्य आश्रम के पालन और शिक्षा की पूर्णता के बाद विवाह संपन्न किया जाता है। यह विवाह बिना किसी धन- धान्य या दहेज के लेन-देन के संपन्न होता है।
ब्रह्म विवाह में पिता अपनी पुत्री का कन्यादान करता है और यह पूरी प्रक्रिया धार्मिक विधि-विधान से संपन्न होती है। आज के समय में भी इसे मुख्य विवाह पद्धति के रूप में अपनाया जाता है। हालांकि, आधुनिक युग में इसके स्वरूप में कई बदलाव आ चुके हैं। आइए इस लेख में ब्रह्म विवाह के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं।
ब्रह्म विवाह क्या है?
ब्रह्म विवाह में वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को विवाह का प्रस्ताव दिया जाता है। यह प्रस्ताव तब दिया जाता है जब वर अपनी शिक्षा पूर्ण कर चुका हो और गुरुकुल में रहकर ब्रह्मचर्य आश्रम का संपूर्ण पालन किया हो। इसके अलावा वधू विवाह योग्य आयु में हो और उसने भी ब्रह्मचर्य का पालन किया हो।
क्या है विवाह की प्रक्रिया?
- वर पक्ष वधू के घर जाकर रिश्ते को पक्का करते हैं।
- इसके बाद विवाह की रस्में जैसे मेहंदी, हल्दी, मिलनी और भोज भात की रस्में पूरी की जाती हैं।
- विवाह में मंत्रोच्चार और अग्नि के समक्ष सात फेरे लिए जाते हैं।
- कन्यादान विवाह का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
ब्रह्म विवाह का महत्व
- पवित्रता और आदर्श: यह विवाह बिना किसी धन या दहेज के लेन-देन के संपन्न होता है। इसे आदर्श विवाह माना जाता है, क्योंकि इसमें वर-वधू की सहमति और धार्मिक विधि-विधान प्रमुख हैं।
- ब्रह्मचर्य और शिक्षा का पालन: यह सुनिश्चित किया जाता है कि वर ने शिक्षा पूर्ण की हो और अपने ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन किया हो। वधू को भी शिक्षा और ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना होता है।
- कन्यादान की महत्ता: विवाह में कन्यादान को सबसे बड़ा पुण्य माना गया है। ब्रह्म विवाह में यही मुख्य संस्कार है।
ब्रह्म विवाह के नियम
- शिक्षा और ब्रह्मचर्य का पालन: वर-वधू दोनों को ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन करना आवश्यक है। वर को अपनी शिक्षा गुरुकुल में पूर्ण करनी चाहिए।
- दहेज का निषेध: ब्रह्म विवाह में किसी भी प्रकार के धन या वस्तु का लेन-देन निषिद्ध है। इसमें केवल कन्यादान किया जाता है।
- विवाह की आयु: वधू को विवाह योग्य आयु में होना चाहिए।
- समान गोत्र में विवाह का निषेध: पिता की ओर से सात पीढ़ियों और माता की ओर से पांच पीढ़ियों के भीतर विवाह निषेध है।
- धार्मिक विधि-विधान: विवाह पूर्ण रूप से मंत्रोच्चार और धार्मिक नियमों के अनुसार संपन्न होना चाहिए।
आधुनिक युग में ब्रह्म विवाह
आज भी भारत में हिंदू धर्म में ब्रह्म विवाह को मुख्य विवाह पद्धति के रूप में अपनाया जाता है। हालांकि, समय के साथ इसके स्वरूप में बदलाव आए हैं।
- दहेज प्रथा का बढ़ता प्रभाव: पहले ब्रह्म विवाह में दहेज का कोई स्थान नहीं था, लेकिन आज के समय में इसे पैसों और संपत्ति के प्रदर्शन का माध्यम बना दिया गया है। दहेज की मांग और खर्च बढ़ने से विवाह की पवित्रता पर प्रश्नचिह्न लगा है।
- आधुनिकता और दिखावे का प्रभाव: विवाह अब लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर बड़े पैमाने पर आयोजित किए जाते हैं। यह विवाह अब पारिवारिक सहमति से अधिक सामाजिक दिखावे का माध्यम बन गया है।
- पारंपरिक रस्मों का पालन: आज भी ब्रह्म विवाह में पारंपरिक रस्मों जैसे कन्यादान, मंत्रोच्चार और सात फेरों को महत्व दिया जाता है। वर-वधू और दोनों परिवारों की सहमति इस विवाह का मुख्य आधार होती है। ब्रह्म विवाह हिंदू धर्म में विवाह का सबसे आदर्श और पवित्र रूप है। यह केवल वर-वधू की सहमति और धार्मिक विधानों पर आधारित है। हालांकि, आधुनिक युग में इसके स्वरूप में बदलाव आया है, फिर भी इसका मूल उद्देश्य वर-वधू के जीवन को पवित्र और सामाजिक दायित्वों के प्रति प्रतिबद्ध बनाना आज भी प्रासंगिक है। इसलिए, हमें इसे मूल स्वरूप में बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए ताकि विवाह का यह आदर्श रूप अपनी पवित्रता को कायम रख सके।