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Nov 25 2024

कन्या के परिवार को धन देकर किया जाता है असुर विवाह, नहीं पूछी जाती कन्या की मर्जी


Iसनातन धर्म के ग्रंथों में जीवन के हर पहलू के लिए नियम और रीति-रिवाजों का उल्लेख मिलता है। विवाह जैसे पवित्र बंधन के लिए भी समाज ने अलग-अलग परंपराएं निर्धारित की थीं। इन परंपराओं में से एक थी असुर विवाह, जिसका उल्लेख धर्म शास्त्रों में होता है। यह विवाह प्रथा विशेष रूप से निर्धन परिवारों और असमान परिस्थितियों के बीच देखी जाती थी। इसमें कन्या के परिवार को धन देकर विवाह संपन्न किया जाता था। इस प्रथा में कन्या की मर्जी का ध्यान नहीं रखा जाता था। तो आइए इस लेख में असुर विवाह के बारे में विस्तार से जानते हैं। 


क्या है असुर विवाह?


असुर विवाह उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें वर पक्ष, कन्या के परिवार को धन या संपत्ति देकर विवाह करता था। यह विवाह किसी समझौते या सौदे की तरह होता था। इसमें कन्या के परिवार की आर्थिक स्थिति का फायदा उठाया जाता था। अमूमन, यह प्रथा निर्धन परिवारों की कन्याओं के साथ अधिक प्रचलित थी। इसमें वर पक्ष अपनी शक्ति और संपत्ति का उपयोग करके कन्या को अपने साथ विवाह के लिए मजबूर करता था।


कैसे किया जाता था असुर विवाह?


इस प्रकार के विवाह में वर पक्ष के पास धन तो होता था, लेकिन वह सामाजिक या व्यक्तिगत कारणों से विवाह के योग्य नहीं माना जाता था।


  1. वर पक्ष की ताकत: वर पक्ष अपनी आर्थिक स्थिति के दम पर निर्धन कन्या के परिवार को धन या अन्य संपत्ति देता था।
  2. परिवार की सहमति: कन्या के परिवार को इस विवाह के लिए तैयार किया जाता था, लेकिन कन्या की इच्छा की परवाह नहीं की जाती थी।
  3. अयोग्य वर का विवाह: वर में दोष, जैसे गलत आदतें, सामाजिक रूप से निम्न स्थान, या नशे की लत होती थी, लेकिन धन के प्रभाव से विवाह संभव हो जाता था।


कैसे पहचानें कि विवाह 'असुर' है?


धर्मशास्त्रों में असुर विवाह को कुछ विशेष परिस्थितियों में वर्गीकृत किया गया है:


  1. धन का प्रभाव: जब कोई व्यक्ति संपन्न होकर निर्धन कन्या के परिवार को धन देकर विवाह करता है।
  2. अयोग्यता: पुरुष में किसी प्रकार का दोष हो, जैसे खराब आदतें, लेकिन फिर भी वह विवाह कर ले।
  3. जातिगत असमानता: वर का कन्या की जाति से निम्न होना।
  4. परिवार की मजबूरी: निर्धनता या अन्य सामाजिक दबाव के कारण परिवार को विवाह के लिए मजबूर होना।


उपेक्षित विवाह है असुर विवाह 


असुर विवाह को धर्म शास्त्रों में सात अन्य प्रकार के विवाहों के साथ शामिल किया गया है। जैसे ब्रह्म, गंधर्व, राक्षस आदि। हालांकि, इसे आदर्श विवाह के रूप में स्वीकार नहीं किया गया। यह प्रथा समाज में आर्थिक असमानता और महिलाओं के अधिकारों की उपेक्षा को दर्शाती है।


महत्व और प्रासंगिकता 


आज के समय में असुर विवाह भले ही प्रचलन में ना हो। लेकिन, यह प्रथा इतिहास के उस हिस्से को उजागर करती है, जब महिलाओं की मर्जी को नजरअंदाज कर समाज में असमानता को बढ़ावा दिया गया। यह एक उदाहरण है कि कैसे आर्थिक ताकत का उपयोग सामाजिक संरचना को प्रभावित करने के लिए किया जाता था।


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