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Iसनातन धर्म के ग्रंथों में जीवन के हर पहलू के लिए नियम और रीति-रिवाजों का उल्लेख मिलता है। विवाह जैसे पवित्र बंधन के लिए भी समाज ने अलग-अलग परंपराएं निर्धारित की थीं। इन परंपराओं में से एक थी असुर विवाह, जिसका उल्लेख धर्म शास्त्रों में होता है। यह विवाह प्रथा विशेष रूप से निर्धन परिवारों और असमान परिस्थितियों के बीच देखी जाती थी। इसमें कन्या के परिवार को धन देकर विवाह संपन्न किया जाता था। इस प्रथा में कन्या की मर्जी का ध्यान नहीं रखा जाता था। तो आइए इस लेख में असुर विवाह के बारे में विस्तार से जानते हैं।
असुर विवाह उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें वर पक्ष, कन्या के परिवार को धन या संपत्ति देकर विवाह करता था। यह विवाह किसी समझौते या सौदे की तरह होता था। इसमें कन्या के परिवार की आर्थिक स्थिति का फायदा उठाया जाता था। अमूमन, यह प्रथा निर्धन परिवारों की कन्याओं के साथ अधिक प्रचलित थी। इसमें वर पक्ष अपनी शक्ति और संपत्ति का उपयोग करके कन्या को अपने साथ विवाह के लिए मजबूर करता था।
इस प्रकार के विवाह में वर पक्ष के पास धन तो होता था, लेकिन वह सामाजिक या व्यक्तिगत कारणों से विवाह के योग्य नहीं माना जाता था।
धर्मशास्त्रों में असुर विवाह को कुछ विशेष परिस्थितियों में वर्गीकृत किया गया है:
असुर विवाह को धर्म शास्त्रों में सात अन्य प्रकार के विवाहों के साथ शामिल किया गया है। जैसे ब्रह्म, गंधर्व, राक्षस आदि। हालांकि, इसे आदर्श विवाह के रूप में स्वीकार नहीं किया गया। यह प्रथा समाज में आर्थिक असमानता और महिलाओं के अधिकारों की उपेक्षा को दर्शाती है।
आज के समय में असुर विवाह भले ही प्रचलन में ना हो। लेकिन, यह प्रथा इतिहास के उस हिस्से को उजागर करती है, जब महिलाओं की मर्जी को नजरअंदाज कर समाज में असमानता को बढ़ावा दिया गया। यह एक उदाहरण है कि कैसे आर्थिक ताकत का उपयोग सामाजिक संरचना को प्रभावित करने के लिए किया जाता था।
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