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रघुनन्दन राघव राम हरे
सिया राम हरे सिया राम हरे ।
राधे कृष्ण की ज्योति अलोकिक, तीनों लोक में छाये रही है ।
पवन मंद सुगंध शीतल, हेम मंदिर शोभितम्, निकट गंगा बहत निर्मल, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम्।
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
जैसे अटल हिमालय और जैसे अडिग सुमेर । ऐसे ही स्वर्ग द्वार पै, अविचल खड़े कुबेर ॥