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परिश्रम करे कोई कितना भी लेकिन (Parishram Kare Koi Kitana Bhi Lekin)

परिश्रम करे कोई कितना भी लेकिन,

कृपा के बिना काम चलता नहीं है ।

निराशा निशा नष्ट होती ना तब तक,

दया भानु जब तक निकलता नहीं है ।


दमित वासनाये, अमित रूप ले जब,

अंतः-करण में, उपद्रव मचाती ।

तब फिर कृपासिंधु, श्री राम जी के,

अनुग्रह बिना, काम चलता नहीं है ।

(अनुग्रह बिना, मन सम्हलता नहीं है)


परिश्रम करे कोई कितना भी लेकिन,

कृपा के बिना काम चलता नहीं है ।


म्रगवारी जैसे, असत इस जगत से,

पुरुषार्थ के बल पे, बचना है मुश्किल ।

श्री हरि के सेवक, जो छल छोड़ बनते,

उन्हें फिर ये, संसार छलता नहीं है ।


परिश्रम करे कोई कितना भी लेकिन,

कृपा के बिना काम चलता नहीं है ।


सद्गुरू शुभाशीष, पाने से पहले,

जलता नहीं ग्यान, दीपक भी घट में ।

बहती न तब तक, समर्पण की सरिता,

अहंकार जब तक, कि गलता नहीं ।


परिश्रम करे कोई कितना भी लेकिन,

कृपा के बिना काम चलता नहीं है ।


राजेश्वरानन्द, आनंद अपना,

पाकर ही लगता है, जग जाल सपना ।

तन बदले कितने भी, पर प्रभु भजन बिन,

कभी जन का, जीवन बदलता नहीं ।


परिश्रम करे कोई कितना भी लेकिन,

कृपा के बिना काम चलता नहीं है ।

निराशा निशा नष्ट होती ना तब तक,

दया भानु जब तक निकलता नहीं है ।

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भगवान चक्रधर 12वीं शताब्दी के एक महान तत्त्वज्ञ, समाज सुधारक और महानुभाव पंथ के संस्थापक थे। महानुभाव धर्मानुयायी उन्हें ईश्वर का अवतार मानते हैं। उनका जन्म बारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, गुजरात के भड़ोच में हुआ था। उनका जन्म नाम हरीपालदेव था।

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