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ना जी भर के देखा, ना कुछ बात की (Na Jee Bhar Ke Dekha Naa Kuch Baat Ki)

ना जी भर के देखा, ना कुछ बात की,

बड़ी आरजू थी, मुलाकात की ।

करो दृष्टि अब तो प्रभु करुना की,

बड़ी आरजू थी, मुलाकात की ॥


गए जब से मथुरा वो मोहन मुरारी,

सभी गोपिया बृज में व्याकुल थी भारी ।

कहा दिन बिताया, कहाँ रात की,

बड़ी आरजू थी, मुलाकात की ॥


चले आयो अब तो ओ प्यारे कन्हिया,

यह सूनी है कुंजन और व्याकुल है गैया ।

सूना दो अब तो इन्हें धुन मुरली की,

बड़ी आरजू थी, मुलाकात की ॥


हम बैठे हैं गम उनका दिल में ही पाले,

भला ऐसे में खुद को कैसे संभाले ।

ना उनकी सुनी ना कुछ अपनी कही,

बड़ी आरजू थी, मुलाकात की ॥


तेरा मुस्कुराना भला कैसे भूलें,

वो कदमन की छैया, वो सावन के झूले ।

ना कोयल की कू कू, ना पपीहा की पी,

बड़ी आरजू थी, मुलाकात की ॥


तमन्ना यही थी की आएंगे मोहन,

मैं चरणों में वारुंगी तन मन यह जीवन ॥

हाय मेरा यह कैसा बिगड़ा नसीब,

बड़ी आरजू थी, मुलाकात की ॥

16 सोमवार व्रत कथा (16 Somavaar Vrat Katha)

एक समय श्री महादेवजी पार्वती के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक में अमरावती नगरी में आए। वहां के राजा ने शिव मंदिर बनवाया था, जो कि अत्यंत भव्य एवं रमणीक तथा मन को शांति पहुंचाने वाला था। भ्रमण करते सम शिव-पार्वती भी वहां ठहर गए।

मेरे नैनों की प्यास बुझा दे

मेरे नैनों की प्यास बुझा दे
माँ, तू मुझे दर्शन दे (माँ, तू मुझे दर्शन दे)

नारायणी शरणम्(Narayani Sharanam)

नारायणी शरणम
दोहा – माँ से भक्ति है,

महाकाल की नगरी मेरे मन को भा गई (Mahakal Ki Nagri Mere Maan Ko Bha Gayi)

मेरे भोले की सवारी आज आयी,
मेरे शंकर की सवारी आज आयी,