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मोहनी मुरति साँवरी सूरति(Mohini Murat Sanwali Surat, Aai Basau In Nainan Me)

मोहनी मुरति साँवरी सूरति,

आइ बसौ इन नैनन में ।

अति सुन्दर रूप अनूप लिये,

नित खेलत खात फिरौ वन में ॥


निशि वासर पान करूँ उसका,

रसधार जो बाँसुरी की धुन में ।

बैकुन्ठ से धाम की चाह नहीं,

बस बास करूँ वृन्दावन में ॥


पीठ से पीठ लगाइ खड़े,

वह बाँसुरी मन्द बजा रहे हैं ।

अहोभाग्य कहूँ उस धेनु के क्या,

खुद श्याम जिसे सहला रहे हैँ ॥


बछड़ा यदि कूद के दूर गयौ,

पुचकार उसे बहला रहे हैं ॥

गोविंद वही, गोविंद वही,

गोपाल वही कहला रहे हैं ॥


नाम पुकारि बुलाई गयी,

तजि भूख और प्यास भजी चली आयी ।

कजरी, बजरी, धूमरि, धौरी,

निज नामन से वो रहीं हैं जनायी ॥

धूप गयी और साँझ भयी तब,

बाँसुरी मन्द दयी है बजायी ।

घनश्याम के पीछे ही पीछे चलें,

वह धेनु रहीं हैं महा सुख पायी ॥


बैकुन्ठ नहीं, ब्रह्मलोक नहीं,

नहीं चाह करूँ देवलोकन की ।

राज और पाठ की चाह नहीं,

नहीं ऊँचे से कुन्ज झरोकन की ॥

चाह करूँ बस गोकुल की,

यशोदा और नंद के दर्शन की ।

जिनके अँगना नित खेलत हैं,

उन श्याम शलौने से मोहन की ॥


गोविंद हरे गोपाल हरे,

जय जय प्रभु दीनदयाल हरे ।

इस मन्त्र का जो नित जाप करे,

भव सिंन्धु से पार वो शीघ्र तरे ॥

वह भक्ती विकास करे नित ही,

और पाप कटें उसके सगरे ।

घनश्याम के ध्यान में मस्त रहे,

उर में सुख शाँति निवास करे ॥

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श्री शनिवार व्रत कथा

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