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महल को देख डरे सुदामा
का रे भई मोरी राम मड़ईया
कहाँ के भूप उतरे
इत उत भटकत,चहुँ ओर खोजत
मन में सोच करे
का रे भई मोरी राम मड़ईया
प्रभु से विनय करे
कनक अटारी चढ़ी बोली सुंदरी
काहे भटक रह्यो
सकल सम्पदा है गृह भीतर
दीनानाथ भरे
प्रथम द्वार गजराज विराजे
दूजे अश्व खड़े
तीजे द्वार विश्वकर्मा बैठे
हीरा-रतन जड़े
दीनानाथ तिन्हन के अंदर
जा पर कृपा करे
सूरदास प्रभु आस चरण की
दुःख दरिद्र हरे