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मगन ईश्वर की भक्ति में (Magan Ishwar Ki Bhakti Me Are Mann Kiyon Nahin Hota)

मगन ईश्वर की भक्ति में,

अरे मन क्यों नहीं होता।

पड़ा आलस्य में मुर्ख,

रहेगा कब तलक सोता॥


जो इच्छा है तेरे कट जाएं,

सारे मैल पापों के।

प्रभु के प्रेम जल से,

क्यों नहीं अपने को तू धोता॥


विषय और भोग में फंस कर,

न बर्बाद कर तू अपने जीवन को।

दमन कर चित्त की वृत्ति,

लगा ले योग में गोता॥


नहीं संसार की वास्तु,

कोई भी सुख की हेतु है।

व्यथा इनके लिए फिर क्यों,

समय अनमोल तू खोता॥


ना पत्नी काम आएगी,

ना भाई-पुत्र और पोता।

धर्म ही एक ऐसा है,

जो साथी अंत तक होगा॥


भटकता क्यों फिरे नाहक,

तू सुख के लिए मूर्ख।

तेरे ह्रदय के भीतर ही बहे,

आनंद का श्रोता॥


मगन ईश्वर की भक्ति में,

अरे मन क्यों नहीं होता।

पड़ा आलस्य में मुर्ख,

रहेगा कब तलक सोता॥


आ दरश दिखा दे मेरी माँ (Aa Darsh Dikha De Meri Maa)

आ दरश दिखा दे मेरी माँ,
तुझे तेरे लाल बुलाते है,

श्री सङ्कटनाशन गणेश स्तोत्रम्

प्रणम्य शिरसा देवंगौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मेरनित्यमाय्ःकामार्थसिद्धये॥

सन्तान सप्तमी व्रत कथा (Santana Saptami Vrat Katha)

सन्तान सप्तमी व्रत कथा (यह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है।) एक दिन महाराज युधिष्ठिर ने भगवान् से कहा कि हे प्रभो!

ऐसो रास रच्यो वृन्दावन (Aiso Ras Racho Vrindavan)

ऐसो रास रच्यो वृन्दावन,
है रही पायल की झंकार ॥

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