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मगन ईश्वर की भक्ति में (Magan Ishwar Ki Bhakti Me Are Mann Kiyon Nahin Hota)

मगन ईश्वर की भक्ति में,

अरे मन क्यों नहीं होता।

पड़ा आलस्य में मुर्ख,

रहेगा कब तलक सोता॥


जो इच्छा है तेरे कट जाएं,

सारे मैल पापों के।

प्रभु के प्रेम जल से,

क्यों नहीं अपने को तू धोता॥


विषय और भोग में फंस कर,

न बर्बाद कर तू अपने जीवन को।

दमन कर चित्त की वृत्ति,

लगा ले योग में गोता॥


नहीं संसार की वास्तु,

कोई भी सुख की हेतु है।

व्यथा इनके लिए फिर क्यों,

समय अनमोल तू खोता॥


ना पत्नी काम आएगी,

ना भाई-पुत्र और पोता।

धर्म ही एक ऐसा है,

जो साथी अंत तक होगा॥


भटकता क्यों फिरे नाहक,

तू सुख के लिए मूर्ख।

तेरे ह्रदय के भीतर ही बहे,

आनंद का श्रोता॥


मगन ईश्वर की भक्ति में,

अरे मन क्यों नहीं होता।

पड़ा आलस्य में मुर्ख,

रहेगा कब तलक सोता॥


भानु सप्तमी का व्रत क्यों रखा जाता है

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क्यों मनाते हैं मकर संक्रांति

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हरी दर्शन की प्यासी अखियाँ (Akhiya Hari Darshan Ki Pyasi)

हरी दर्शन की प्यासी अखियाँ
अखियाँ हरी दर्शन की प्यासी ॥

श्री राम धुन में मन तू (Sri Ram Dhun Mein Mann Tu)

श्री राम धुन में मन तू,
जब तक मगन ना होगा,

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