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भजहु रे मन श्री नंद नंदन (Bhajahu Re Mann Shri Nanda Nandan)

भजहु रे मन श्री नंद नंदन

अभय-चरणार्विन्द रे

दुर्लभ मानव-जन्म सत-संगे

तारो ए भव-सिंधु रे


भजहु रे मन श्री नंद नंदन

अभय-चरणार्विन्द रे


शीत तप बात बरिशन

ए दिन जामिन जगी रे

बिफले सेविनु कृपन दुरजन

चपल सुख लभ लागी रे


भजहु रे मन श्री नंद नंदन

अभय-चरणार्विन्द रे


ए धन यौवन पुत्र परिजन

इथे की आचे पारतित रे

कमल-दल-जल, जीवन तलमल

भजू हरि-पद नीत रे


भजहु रे मन श्री नंद नंदन

अभय-चरणार्विन्द रे


श्रवण कीर्तन स्मरण वंदन

पद सेवन दास्य रे

पूजन, सखी-जन, आत्म-निवेदन

गोविंद-दास-अभिलाषा रे


भजहु रे मन श्री नंद नंदन

अभय-चरणार्विन्द रे

दुर्लभ मानव-जन्म सत-संगे

तारो ए भव-सिंधु रे


माँ तू ही नज़र आये(Maa Tu Hi Nazar Aaye)

मुँह फेर जिधर देखूं माँ तू ही नज़र आये,
माँ छोड़ के दर तेरा कोई और किधर जाये ॥

मोरी मैय्या की चूनर उड़ी जाए

धीरे चलो री, पवन धीरे - धीरे चलो री।
धीरे चलो री पुरवइया।

वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व

वैकुंठ चतुर्दशी हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इसे कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है। यह कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पहले आता है और देव दिवाली से भी संबंधित है।

अथार्गलास्तोत्रम् (Athargala Stotram)

पवित्र ग्रंथ दुर्गा सप्तशती में देवी अर्गला का पाठ देवी कवचम् के बाद और कीलकम् से पहले किया जाता है। अर्गला को शक्ति के रूप में व्यक्त किया जाता है और यह चण्डी पाठ का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

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